‘सेक्युलरिज्म’ विदेशी अवधारणा, यह खत्म होना चाहिए : अश्विनी चौबे

नई दिल्ली, 22 अक्टूबर . सुप्रीम कोर्ट में संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने की मांग को लेकर याचिका डाली गई है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी चौबे ने मंगलवार को से खास बातचीत की.

अधिवक्ता अश्विनी चौबे ने से कहा क‍ि जब संविधान का न‍िर्माण हो रहा था, तो इसमें सेक्युलर शब्द शाम‍िल करने के ल‍िए तीन बार प्रस्ताव आया, और तीनों बार एक मत में संविधान सभा ने उसे रिजेक्ट किया था. हमारे संविधान निर्माताओं ने कहा था कि सेकुलरिज्म का कांसेप्ट विदेशी है, यह भारत की संस्कृति के अनुकूल नहीं है. अगर इसको जोड़ा जाएगा, तो यह भारत की संस्कृति को बर्बाद कर देगा. अनुभव भी यही बताता है कि जब से 1976 में सेकुलर शब्द आया, तब से हमारे संस्कृति और सनातन धर्म पर हमला हो रहा है.

उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के वक्त विपक्ष के सारे नेता जेल में थे. मीडिया, अखबार बंद थे, बिजली, पानी का कनेक्शन कटा हुआ था. लोकसभा का कार्यकाल 1976 मार्च में पूरा हो चुका था और नवंबर में संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ा गया. उस दौरान काम चलाने के ल‍िए लोकसभा के कार्यकाल को बढ़ाया गया था. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री को किसी सरकारी कागज पर हस्ताक्षर करने का भी अधिकार नहीं था.

अश्विनी चौबे ने बताया कि अरविंद केजरीवाल को बेल देते समय कोर्ट ने जो शर्त रखी है, लगभग वही शर्त, उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी के लिए रखी थी. 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को ऑफिस नहीं जाने का आदेश दिया और 25 जून को उन्होंने इमरजेंसी लगा दिया. मार्च 1976 में लोकसभा का टेन्योर पूरा हो गया और नवंबर में उन्होंने संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर बदल दिया. प्रस्तावना, संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर है. अगर प्रस्तावना में संशोधन शुरू हो जाएगा, तो इसका कोई अंत नहीं है.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हमारा कहना है कि उस समय सरकार को संविधान में संशोधन करने का अधिकार नहीं था. प्रस्तावना में संशोधन नहीं होना चाहिए. सेक्युलरिज्म विदेशी कांसेप्ट है, ये खत्म होना चाहिए. भारत हमेशा से धर्म सापेक्ष था और धर्म के रास्ते पर ही चलता है. जजों और सांसदों को भी अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए.

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