सत्यजीत घोष: टाइमिंग और पोजिशनिंग के लिए मशहूर भारतीय फुटबॉल इतिहास का बेहतरीन डिफेंडर

New Delhi, 9 नवंबर . भारतीय फुटबॉल के इतिहास में सत्यजीत घोष का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. सत्यजीत की पहचान एक मजबूत डिफेंडर के रूप में थी. वह भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान भी रहे थे.

सत्यजीत घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के बांदेल में हुआ था. उनकी जन्मतिथि के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. सत्यजीत बचपन से ही फुटबॉल में रुचि रखते थे और इस खेल में कुछ बड़ा करने का लक्ष्य लिए कड़ी मेहनत करते थे. सत्यजीत एक बेहतरीन डिफेंडर थे. उनकी टाइमिंग और पोजिशनिंग शानदार थी. उनके सामने से गेंद को ले जाना विपक्षी टीम के लिए मुश्किल चुनौती हुआ करती थी. वे न केवल विपक्षी हमलों को नाकाम करते, बल्कि मिडफील्ड को गेंद पहुंचाकर आक्रमण की शुरुआत भी करते. सुब्रत भट्टाचार्य के साथ उनकी डिफेंस की जोड़ी काफी लोकप्रिय रही.

भारतीय टीम के लिए सत्यजीत घोष का योगदान बेहद सराहनीय रहा. 1985 में कोच्चि में आयोजित नेहरू कप में उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी की थी. यह टूर्नामेंट उस समय एशिया का प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आयोजन था. इस टूर्नामेंट में सत्यजीत के शानदार खेल ने भारतीय टीम को मजबूती प्रदान की थी. India को उस टूर्नामेंट में सफलता नहीं मिली थी.

1980 से उन्होंने रेलवे एफसी के लिए खेलना शुरू किया. 1981 में वे बंगाल के प्रतिष्ठित मोहन बागान क्लब से जुड़े. 1982 से 1986 तक और फिर 1988 में मोहन बागान के लिए खेलते हुए, सत्यजीत ने कई महत्वपूर्ण ट्रॉफी जीतीं. फेडरेशन कप 1982 में माफतलाल के खिलाफ फाइनल में उनकी भूमिका यादगार रही, जहां मोहन बागान ने जीत हासिल की. वे पश्चिम बंगाल के लिए संतोष ट्रॉफी में खेले.

सत्यजीत घोष फुटबॉल से संन्यास के बाद अपने गांव लौट गए थे. वे युवाओं को फुटबॉल की कोचिंग दिया करते थे. 9 नवंबर 2020 को उनका निधन 62 साल की उम्र में हार्ट अटैक से हो गया था.

पीएके