Mumbai , 9 अगस्त . सिनेमा के इतिहास में महिलाओं के योगदान को कम ही याद रखा जाता है. बहुत सी महिलाएं तो ऐसी हैं जिन्होंने फिल्मों में योगदान तो दिया, मगर उन्हें वक्त के साथ भुला दिया गया, इसलिए उनके इतिहास को संजोना और उन्हें सेलिब्रेट करना बहुत जरूरी है ताकि सदियों तक उनके नाम की चमक फीकी न पड़े. ऐसी ही एक महिला थीं सरस्वती देवी, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को कमाल की धुनों से सजाया, लेकिन जो किया उसका ढिंढोरा पीटना सही नहीं समझा. बॉलीवुड की इस पहली पेशेवर महिला संगीतकार ने जो किया वो दुनिया से छुपकर किया.
1912 में एक पारसी परिवार में जन्मी सरस्वती देवी का असली नाम खुर्शीद मांचेरशेर मिनोचेर होमजी था. वो एक प्रशिक्षित क्लासिकल सिंगर थीं.
सरस्वती देवी एक मशहूर संगीतकार थीं. उन्होंने 30 और 40 के दशक में बॉम्बे टॉकीज की कई फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया. करियर की शुरुआत 1935 में ‘जवानी की हवा’ से हुई. इसके बाद उन्होंने अछूत कन्या, कंगन, बंधन और झूला जैसी कई फिल्मों का म्यूजिक कंपोज किया. पंकज राग ने अपनी किताब ‘धुनों की यात्रा’ में इनके सफर को लेकर लेख लिखा है. हालांकि इसमें जद्दनबाई का भी जिक्र है. बताया गया है कि उन्होंने सबसे पहले फिल्म में संगीत दिया लेकिन महज एकाध फिल्म तक वो सीमित रहीं. वहीं सरस्वती देवी ने लगभग एक दशक तक म्यूजिक दिया.
ये भी बड़ी दिलचस्प बात है कि एक के बाद एक हिट फिल्मों का संगीत देने वाली इस हुनरमंद को अपना नाम छुपा कर काम करना पड़ा. फिल्मों में काम करने के लिए ही उन्होंने अपना नाम सरस्वती रखा ताकि उनके खानदान में इसका पता न चले. वो दौर ही कुछ ऐसा था जिसमें नाम मात्र की महिलाओं को हुनर दिखाने की इजाजत थी और वो भी जब रूढ़िवादी पारसी परिवार की महिला हो तो मुश्किलें बेशुमार थीं.
बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय के साथ बतौर म्यूजिक डायरेक्टर उनके सफर की शुरुआत हुई. हिमांशु ने उन्हें एक कार्यक्रम में गाते हुए सुना था. उनकी आवाज हिमांशु को पसंद आई और उन्होंने उन्हें तुरंत संगीतकार के रूप में टॉकीज से जुड़ने का ऑफर दे दिया.
पहले तो उन्हें लग रहा था कि वो कैसे फिल्म इंडस्ट्री में काम पा सकेंगी; उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा नहीं किया था, इसलिए वो थोड़ी हिचकिचाईं, मगर बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया.
हालांकि वो म्यूजिक कंपोजर बन तो गई थीं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी नॉन-सिंगर को सिंगर बनाना. यही नहीं, प्रतिद्वंदी भी कई थे और उन्हें के एल सहगल और कानन देवी जैसे सिंगर्स से भी टक्कर लेनी थी.
सरस्वती देवी की सबसे बड़ी सफलता ये थी कि उन्होंने नॉन सिंगर्स- एक्टर्स के साथ हिट गाने बनाए. इनमें अशोक कुमार, देविका रानी और लीला चिटनिस जैसे सितारों के नाम शामिल हैं. इनके साथ उन्होंने ‘मन भावन लो सावन आया रे’ और ‘झूले के संग झूलो झूलो मेरे मन’ जैसे गाने बनाए.
इनका सबसे हिट गाना अछूत कन्या से “मैं बन की चिड़िया बन के बन-बन बोलूं रे” था. उसमें अशोक कुमार और देविका रानी थीं. इस गाने को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी सराहा था.
1950 में वो बॉम्बे टॉकीज से अलग हुईं और दो गजलें बनाई. “लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में” और “ये ना थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता.” ये काफी हिट हुईं.
9 अगस्त 1980 को इनका निधन हो गया लेकिन अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गईं. ऐसा संगीत जो आज भी सुने तो नया सा लगता है.
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जेपी/केआर