नई दिल्ली, 7 दिसंबर . इंडिया ब्लॉक के गठन के साथ ही इसके घटक दलों के बीच खटपट शुरू हो गई थी. जब यह अपने सही आकार में आ रहा था, उससे पहले ही नीतीश कुमार ने इससे अपना पल्ला झाड़ लिया और लोकसभा चुनाव 2024 से पहले वह एनडीए के साथ हो लिए. हालांकि, लोकसभा चुनाव के दौरान भी इंडिया ब्लॉक के दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर खूब रार रही.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस और वाम दलों को सीट देने से इंकार कर गईं. दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सीट दे दिया. लेकिन, पंजाब में आप और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर समझौता नहीं हो पाया. समाजवादी पार्टी ने यूपी में और बिहार में राजद ने मनमाना तरीके से सीटों का बंटवारा किया और कांग्रेस जितनी हिस्सेदारी सीटों की चाह रही थी उतना उसके हिस्से नहीं आया.
लोकसभा चुनाव में एनडीए की सरकार की वापसी के बाद इस खेमे के घटक दलों के बीच खींचतान और बयानबाजी तेज हो गई. इसके बाद के हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में तो इंडी गठबंधन बिखरता ही नजर आया. कई राज्यों में हुए विधानसभा उपचुनाव में उन राज्यों की सत्ता पर काबिज क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को सीटें नहीं दी तो वहीं हरियाणा जैसे राज्य में कांग्रेस, आप और सपा का गठबंधन नहीं हो पाया. आम आदमी पार्टी ने तो दिल्ली विधानसभा को लेकर साफ ऐलान कर दिया कि वह अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. यूपी में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने जो सीट कांग्रेस के हिस्से के लिए छोड़ी, कांग्रेस को उससे ही संतोष करना पड़ा.
अब कांग्रेस के द्वारा इंडी गठबंधन के नेतृत्व को लेकर भी घटक दलों के द्वारा सवाल उठाया जाने लगा है. खासकर राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडी गठबंधन की जो स्थिति महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में हुई है. उससे गठबंधन के दल ही संतुष्ट नहीं हैं. ममता बनर्जी की टीएमसी के नेता तो महाराष्ट्र चुनाव नतीजे के बाद और आप के नेता हरियाणा चुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस को आत्मचिंतन की सलाह तक दे बैठे थे.
दरअसल, भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए तमाम विपक्षी दल एक साथ मंच पर तो आए. लेकिन, इस गठबंधन के नेतृत्व को लेकर सबकी महत्वाकांक्षा दिखी. राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस के हिस्से में यह जिम्मेदारी थी और कांग्रेस की तरफ से इस गठबंधन के नेतृत्व का चेहरा राहुल गांधी थे. ऐसे में विपक्षी गठबंधन के घटक दल भीतर खाने ही सही इस गठबंधन की विफलता के पीछे राहुल गांधी के नेतृत्व को हीं जिम्मेदार मानते हैं.
खुले विचार के साथ राजनीतिक बातों और मंतव्यों को रखने के लिए जानी जाने वाली ममता बनर्जी ने हाल ही में इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व की इच्छा जाहिर की. उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान अपनी यह बात रख दी. ममता की इस बात पर इंडिया ब्लॉक के कई दलों के नेताओं ने समर्थन जताया और उनके इस बयान पर उनसे बातचीत करने की बात कही. फिर क्या था ममता का यह बयान जंगल में आग की तरह फैला और सियासी सूरमाओं की इसको लेकर प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई. शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने तो कह दिया कि वे भी चाहते हैं कि वह(ममता बनर्जी) इंडी ब्लॉक की प्रमुख भागीदार बनें, इसके लिए वह जल्द ही कोलकाता में ममता बनर्जी से बात करने जाएंगे. शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने शब्दों में ममता के इस बयान का समर्थन किया.
ममता बनर्जी ने तो बांग्ला न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में यह तक दावा कर दिया कि उन्होंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था. हालांकि इसमें सच्चाई कम है. लेकिन, ममता को कांग्रेस और अन्य दलों के साथ एक मंच पर लाने का काम नीतीश कुमार ने किया था और अब वह इस गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं, ऐसे में उनकी यह बात एक हद तक सही भी है. ममता बनर्जी ने तो अपने अंदाज में कहा कि ”मैंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था. अब इसे संभालने की जिम्मेदारी उन लोगों पर है जो इसका नेतृत्व कर रहे हैं. अगर वे इसे नहीं चला सकते, तो मैं क्या कर सकती हूं?”
ममता बनर्जी ने इस गठबंधन की कमान मिलने पर इसके सुचारू संचालन का दावा भी कर दिया. ममता के इस दावे का सपा की तरफ से समर्थन किया गया है. इसको लेकर महाराष्ट्र के सपा नेता अबू आजमी ने साफ किया कि वह अखिलेश यादव से इंडिया गठबंधन से बाहर निकलने की अपील करेंगे. वहीं सपा के एक नेता उदय प्रताप ने तो ममता बनर्जी के लीडरशिप क्वालिटी पर मुहर लगा दी.
टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने तो हाल ही में कांग्रेस और गठबंधन के अन्य सहयोगियों से अपने अहंकार को अलग रखने और ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का नेता बनाने की मांग भी की थी.
ममता बनर्जी से पहले सीपीआई की तरफ से भी कांग्रेस के इस गठबंधन के नेतृत्व के तरीकों को लेकर नाराजगी जाहिर की जा चुकी है.
इस सबके पीछे की वजह दरअसल यह है कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस की भूमिका और भी कम हो गई, क्योंकि हाल के चुनावों में अन्य छोटे दलों ने उससे बेहतर प्रदर्शन किया.
अब ऐसे में ममता बनर्जी के इस बयान को राजनीति के जानकार उनकी पार्टी का इस गठबंधन से एग्जिट प्लान भी बता रहे हैं. क्योंकि कांग्रेस तो ममता बनर्जी के इस गठबंधन में नेतृत्व को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करेगी. ऐसे में दीदी आसानी से इस गठबंधन से बाहर निकल सकती हैं. यही कुछ नीतीश कुमार ने भी किया था.
दरअसल, ममता बनर्जी की पार्टी संसद में भी कांग्रेस से अलग राय रखती नजर आ रही है. कांग्रेस जहां एक तरफ विरोध-प्रदर्शन के नाम पर संसद की कार्यवाही बाधित रखना चाहती है, वहीं टीएमसी नेता संसद में बहस के दौरान उसमें शामिल होना चाहते हैं.
ममता बनर्जी को साफ पता चल गया कि कांग्रेस उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव लड़ी, जहां वह पूरी तरह से कमजोर है. यानी जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में वह इंडिया ब्लॉक के दलों के साथ मैदान में उतरी. जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जहां वह मजबूत नजर आई, वहां गठबंधन के सहयोगी दलों को पास तक फटकने नहीं दिया. ऐसे में ममता दीदी ने बंगाल चुनाव से पहले अपने सेफ एग्जिट का प्लान बना लिया है और इसकी सफलता कई और दलों को इंडी गठबंधन से निकलने का बेहतर रास्ता तैयार करके देने वाली है.
–
जीकेटी/