दिल्‍ली में रोहिंग्याओं को रोजगार भी है हासिल

नई दिल्ली, 14 मार्च . दिल्ली के कालिंदी कुंज के पास बसे रोहिंग्या टेक्निकल काम सीखकर मोटर मैकेनिक जैसे रोजगार हासिल कर रहे हैं. इसके अलावा, उन्‍हें आसपास के इलाकों में भी काम मिल रहा है. बीमार पड़ने पर वे यहां के सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाते हैं.

इसी बस्ती में रहने वाला रोहिंग्या नौजवान नूर मोहम्मद ने को बताया कि यहां रहते हुए उसे 12 साल हो गए हैं. अब अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए उन्‍होंने व बस्ती के कई और नौजवानों ने टेक्निकल काम भी सीख लिए हैं. इनमें कार, स्कूटर व अन्य प्रकार के मैकेनिक का काम शामिल है. इसके अलावा ये लोग बड़ी मशीनें चलाने का काम भी कर रहे हैं.

नूर ने बताया कि यहां रह रहे रोहिंग्या नौजवान मेहनत-मजदूरी करके ठीक-ठाक रकम कमा लेते हैं, जिससे उनका गुजारा हो जाता है. इसी बस्ती में रहने वाली एक महिला ने बताया कि वह और उसके परिवार के लोग जब सरकारी अस्पताल में जाते हैं, तो उन्‍हें इलाज और दवाइयां मिल जाती हैं.

उसका कहना है कि यहां रहने से इन लोगों को पीने का साफ पानी मिल जाता है, इसलिए अब दूषित जल से होने वाली बीमारियां बस्ती के लोगों को परेशान नहीं करती हैं. महिला का कहना है कि यहां पर रहने वाली महिलाएं किसी भी बीमारी के इलाज के लिए अपने आसपास के सरकारी अस्पताल में पहुंचती हैं और वहां उन्‍हें चिकित्‍सा सुविधा मिल जाती है.

दिल्ली के कालिंदी कुंज के पास जैतपुर रोड पर बसी रोहिंग्या बस्ती में तकरीबन 54 परिवार यानी 300 से ज्यादा लोग रह रहे हैं.

गौरतलब है कि हाल ही में सीएए लागू किया गया है, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी.

इस कानून के मुताबिक, तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन सभी अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोला जाएगा, जो लंबे समय से भारत में शरण लिए हुए हैं. इन लोगों ने भारत में इसलिए शरण ली थी, क्योंकि ये लोग अपने मुल्‍क में धार्मिक प्रताड़ना का शिकार हुए थे. सीएए कानून में किसी भी भारतीय की, नागरिकता छीनने का कोई भी प्रावधान नहीं है, चाहे वह किसी मजहब का हो.

पीकेटी/एबीएम