पटना, 3 मई . बिहार के उप मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय कुमार सिन्हा की पहचान बेबाकी से अपनी राय रखने वाले नेताओं में होती है. सवर्ण मतदाताओं में खास पहचान बनाने वाले सिन्हा की छवि ईमानदार नेता के रूप में रही है. इनकी राजनीति छात्र संघ से शुरू हुई और बेरोजगार बिहार जूनियर इंजीनियर एसोसिएशन के महासचिव भी रहे. लखीसराय विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले सिन्हा विधानसभा अध्यक्ष के रूप में भी सफल दायित्व निभा चुके हैं.
इस लोकसभा चुनाव की व्यस्तता के बीच उनसे ने खास बातचीत की. पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश :
सवाल : भाजपा के केंद्र से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेता इस चुनाव में खूब पसीना बहा रहे हैं. क्या यह कोई खास रणनीति का हिस्सा है? जबकि विपक्ष इसको लेकर आप लोगों पर निशाना भी साध रहा है.
जवाब : भाजपा कोई भी चुनाव अपने किये गये कामों के आधार पर लड़ती है. वह इसी को लेकर और भविष्य की योजनाओं को लेकर मतदाताओं के बीच में जाती है. जहां तक रणनीति की बात है तो प्रदेश की सभी सीटों को जीतना एनडीए का लक्ष्य है और इसको लेकर हम लोगों के बीच जा रहे हैं. रही विपक्ष की बात तो इनकी राजनीति ही नकारात्मक हो गयी है.
सवाल : इस चुनाव में विपक्ष एक महागठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरा है, लेकिन राजद के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ही भाजपा पर ज्यादा हमलावर हैं.
उत्तर : विपक्ष के पास इस चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है. इनका खेल एक खास वोट बैंक के इर्द गिर्द घूमता है. यह राजनीति देश, प्रदेश ही नहीं लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. आखिर ये देश को कहां लेकर जाना चाहते हैं? प्रधानमंत्री जी से लेकर भाजपा के अन्य नेताओं ने कांग्रेस के घोषणा पत्र में धर्म के आधार पर आरक्षण के जिक्र को गलत बताया है, लेकिन कांग्रेस, राजद को इसके जवाब देने में पसीने छूट रहे हैं. कर्नाटक में आरक्षण को लेकर कोई विपक्ष का नेता बोल नहीं पा रहा है. यह इनकी तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है. ये लोगों में भ्रम फैला कर चुनाव को दूसरी दिशा देना चाहते हैं. जातीय उन्माद और तुष्टीकरण से ये सत्त्ता तक पहुंचना चाहते हैं, लेकिन ये भूल जाते हैं कि बिहार की जनता बहुत समझदार है.
सवाल : इस चुनाव में भाजपा के लिए मुख्य मुद्दा क्या है?
जवाब : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी ही चुनाव का मुख्य एजेंडा है. 10 वर्षों में किये गए कार्य मुख्य एजेंडा है. आप देखिए न, दशकों की समस्या कश्मीर में धारा 370 समाप्त हुई, 500 वर्षों के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर बना. पिछले संकल्प पत्र के 95 प्रतिशत से वादों को पूरा कर चुनाव में भाजपा गई है.
सवाल : चुनाव के पहले नीतीश कुमार की पार्टी से गठबंधन को कैसे देखते हैं? क्या इससे कुछ नुकसान की संभावना है ?
जवाब : गठबंधन की राजनीति एक मजबूरी कहलाती है. राजनीति में जब से जातीय गणित का दबाव बढ़ा है, तब से गठबंधन की राजनीति की प्रमुखता बढ़ी है. हालांकि राजनीतिक स्थिरता को लेकर भी यह आज जरूरी माना जाता है. रही जदयू की बात तो पहले भी यह एनडीए में शामिल थी. मुख्यमंत्री जी खुद स्वीकार कर चुके हैं कि वे कहीं चले गए थे, लेकिन अब नहीं जाएंगे.
सवाल : विपक्ष नौकरी को लेकर भी भाजपा को घेर रही है.
उत्तर : इसे घेरना नहीं, भ्रम फैलाना और झूठ बोलना कहा जा सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में हमलोगों ने 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा बिहार की जनता से किया था. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को जनादेश मिला. उसके बाद इसपर काम शुरू हुआ. आप ही सोचिए, क्या कोई उप मुख्यमंत्री किसी भी व्यक्ति को नौकरी दे सकता है? उनके पास जितने विभाग थे, उनमें तो एक वेकेंसी निकाल नहीं पाए. अब नीतीश कुमार के कार्यों का क्रेडिट लेने में जुटे हैं. उनको तो राजद सरकार के विषय में बताना चाहिए था कि इस दौर में कितने लोगों को नौकरी दी गई थी.
सवाल : इस चुनाव में बिहार भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है, जिससे निपटना मुश्किल हो रहा है?
जवाब : भाजपा के सामने कोई चुनौती नहीं है. भाजपा के पास नीति भी है, क्षमता भी है और मजबूत नेतृत्व भी है. कार्यकर्ता बूथ स्तर तक है जो पार्टी की नीतियों और प्रधानमंत्री मोदी जी के 10 वर्षों के कार्य को लेकर घर-घर तक पहुंच रहे हैं. कार्यकर्ता और नेतृत्व अगर मजबूत है तो चुनौती का सवाल ही नहीं है. भाजपा विपक्ष के हर प्रपंच से निपटने को तैयार है. पिछली बार कांग्रेस को एक सीट मिली थी, राजद का खाता भी नहीं खुला था, इस चुनाव में दोनों का खाता नहीं खुलने जा रहा है. अब वह जमाना चला गया जब जातीय समीकरण से चुनाव जीते जाते थे.
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एमएनपी/