कोलकाता, 4 अगस्त . पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्धमान जिले के कटवा ब्लॉक-II के अंतर्गत चरकबिराजपुर और चरबिष्णुपुर गांव भागीरथी नदी के निरंतर कटाव में धीरे-धीरे समा रहे हैं. पिछले दो-तीन दशकों में नदी ने सैकड़ों बीघा उपजाऊ जमीन, घर, पेड़ यहां तक कि पूरी बस्तियां निगल ली हैं. इस भीषण त्रासदी के बाद भी प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है.
स्थानीय लोग निराशा में डूबे हैं. उनका कहना है कि हर मानसून में नदी के उफान के साथ नया डर पैदा होता है और हमारी बची-खुची जमीन और जिंदगी पर भी खतरा मंडराने लगता है. बार-बार अपील के बावजूद प्रशासन कोई भी कटाव-रोधी उपाय लागू करने में विफल रहा है.
कालिकापुर फेरी घाट जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. वहां न तो रोशनी है, न प्रतीक्षालय, यहां तक कि शौचालय भी नहीं हैं. शाम ढलते ही पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता है, जिससे आवाजाही और पहुंच बाधित हो जाती है.
नौका तक पहुंचने के लिए भारी लागत से बनाई गई एक पक्की सड़क आंशिक रूप से नदी में बह गई है. इस बीच नादिया से चारबिष्णुपुर तक एक प्रमुख संपर्क मार्ग हर साल तीन से चार महीने नदी के पानी में डूबा रहता है. इस दौरान हजारों लोग गहरे पानी से होकर या छोटी नावों का सहारा लेकर आन-जाने को मजबूर होते हैं. कोई भी वाहन नहीं गुजर सकता, रोजमर्रा की जिंदगी बस किस्मत पर निर्भर है.
स्थानीय लोग नेताओं पर चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करने का आरोप लगाते हैं. उनका कहना है कि बाढ़ नियंत्रण, बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे तमाम वादे नेताओं की ओर से किए जाते हैं. चुनाव के बाद कोई भी नेता जनता की समस्याओं को लेकर गंभीर नजर नहीं आता. मतदान होते ही सारे आश्वासन हवा हो जाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे उनकी जमीन नदी में समा गई हो. यहां तक कि नए घर और पक्की सड़कें भी बह गई हैं, जिससे कई परिवारों को दूसरी जगह बसना पड़ा है. हर चुनाव वादे लेकर आता है. लेकिन, नदी हमारे घर, स्कूल और जमीन निगल रही है. हम कहां जाएं?
ऐसे में लोगों को विस्थापन का डर मंडरा रहा है. नदी के तटबंधों की मरम्मत, आधुनिक नौका टर्मिनल और मजबूत सड़क व्यवस्था के बिना चरकबिराजपुर और चरबिष्णुपुर जैसे क्षेत्र नक्शे से गायब हो सकते हैं.
इस बार ग्रामीणों को उम्मीद की एक किरण दिख रही है. क्योंकि इस क्षेत्र की एक बेटी डॉ. शर्मिला सरकार बर्धमान पूर्व से सांसद चुनी गई हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि वह उनके संघर्ष को किसी से भी बेहतर समझती हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए समय पर कदम उठाएंगी?
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एकेएस/एबीएम