महाराजा हरि सिंह की 130वीं जयंती ने जम्मू और कश्मीर में एक नई ऊर्जा और उत्साह की लहर पैदा कर दी. यह उत्सव डोगरा और राजपूत समुदायों के लिए केवल एक परंपरागत आयोजन नहीं था, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान और गौरव को पुनः स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया है. वर्षों तक आर्टिकल 370 की वजह से महाराजा हरि सिंह की विरासत और उनके योगदान का व्यापक रूप से सार्वजनिक उत्सव संभव नहीं था, लेकिन इस बार यह उत्सव जम्मू के हर कोने में देखा गया, जहां हर वर्ग के लोग अपने पूर्वजों के योगदान को गर्व से सम्मानित कर रहे थे.
महाराजा हरि सिंह का ऐतिहासिक योगदान
1947 में महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत के साथ जम्मू और कश्मीर का विलय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम था. इस विलय ने जम्मू और कश्मीर को भारतीय संघ का अभिन्न हिस्सा बनाया और भारतीय गणराज्य में एक नई पहचान दी. महाराजा हरि सिंह का यह कदम न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इससे हिंदू समुदाय को अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करने का मौका मिला.
उनके शासनकाल में उन्होंने कई सामाजिक सुधारों की नींव रखी, जिससे राज्य में हिंदू समुदाय के साथ-साथ अन्य सभी समुदायों को भी लाभ हुआ. महाराजा हरि सिंह ने शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून के क्षेत्र में कई ऐसे सुधार किए, जिनका प्रभाव आज भी जम्मू और कश्मीर के समाज में देखा जा सकता है. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए यह जयंती डोगरा और राजपूत समुदाय के लिए एक गर्व का अवसर है.
उत्सव का विशेष आयोजन
इस वर्ष महाराजा हरि सिंह की जयंती पर जम्मू के सभी समुदायों ने एक भव्य रैली का आयोजन किया. युवा राजपूत सभा ने पारंपरिक वस्त्रों में सजे सैकड़ों लोगों के साथ मोटर रैली का आयोजन किया, जिसने जम्मू की सड़कों को उत्सव के रंग में रंग दिया. यह आयोजन न केवल महाराजा हरि सिंह की विरासत को सम्मानित करने का प्रतीक था, बल्कि यह दर्शाता है कि अब उनकी विरासत को बड़े पैमाने पर स्वीकारा और सम्मानित किया जा रहा है, जबकि कुछ साल पहले ऐसा संभव नहीं था.
युवा राजपूत सभा के सदस्य विवेक सिंह ने गर्व से कहा, “2022 से पहले हम महाराजा हरि सिंह की जयंती को इतने बड़े पैमाने पर नहीं मना पाते थे. इसे सार्वजनिक रूप से मान्यता दिलाने के लिए हमें एक लंबा संघर्ष करना पड़ा. आज हम अपने इतिहास और जड़ों को गर्व से पुनः प्राप्त कर रहे हैं.”
मोटर रैली और माल्यार्पण
इस उत्सव के हिस्से के रूप में, मोटर रैली में भाग लेने वालों ने महाराजा हरि सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. यह एकता और गौरव का प्रतीक था, जहां लोगों ने एक साथ नारे लगाए, मिठाइयां बांटी और महाराजा के योगदान को याद किया. इस उत्सव ने न केवल महाराजा हरि सिंह की विरासत को सम्मानित किया, बल्कि डोगरा और राजपूत समुदाय के लिए यह एक संदेश था कि वे अपनी पहचान और सांस्कृतिक धरोहर को फिर से जीवंत करने के लिए तैयार हैं.
बदलती परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ
2019 में आर्टिकल 370 के हटने के बाद से जम्मू और कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है. जहां पहले महाराजा हरि सिंह की जयंती जैसी घटनाओं को सार्वजनिक रूप से मनाने में रुकावटें थीं, वहीं अब डोगरा और राजपूत समुदाय बिना किसी भय के अपने उत्सवों को मना सकते हैं. स्थानीय निवासी रवि सिंह कहते हैं, “2019 के बाद से बहुत कुछ बदल गया है. अब हम अपनी विरासत को गर्व और उत्साह से मना सकते हैं. यह जम्मू के हिंदू समुदाय के लिए एक नई सुबह का संकेत है.”
हालांकि, इस समय आर्टिकल 370 की बहाली पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं ने कुछ लोगों में चिंता उत्पन्न की है. अखिल भारतीय डोगरा महासभा के सदस्य महेश कौल ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, “अगर आर्टिकल 370 को फिर से लागू किया जाता है, तो यह हमारी अब तक की प्रगति को पीछे धकेल देगा. यह हमारे अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान के लिए एक गंभीर खतरा है.”
सांस्कृतिक पुनरुद्धार और मंदिरों का पुनर्निर्माण
महाराजा हरि सिंह की जयंती के उत्सव ने केवल अतीत के संघर्षों की याद नहीं दिलाई, बल्कि यह भविष्य की संभावनाओं और चुनौतियों की ओर भी इशारा करता है. जम्मू के हिंदू समुदाय के लिए मंदिरों का पुनर्निर्माण एक महत्वपूर्ण कदम बन चुका है, जिससे उनकी सांस्कृतिक धरोहर को मजबूती मिली है. केंद्र सरकार द्वारा मंदिरों के पुनर्निर्माण पर विशेष ध्यान देने से स्थानीय लोगों में एक नई उम्मीद जगी है.
स्थानीय पुजारी पंडित हरिकृष्ण ने कहा, “सालों तक हमारे मंदिरों को उपेक्षा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. अब इन पवित्र स्थलों का पुनर्निर्माण हमारे लिए नई उम्मीद का प्रतीक है.” यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि सामुदायिक सभाओं और सांस्कृतिक उत्सवों के आयोजन के लिए एकत्र होने के केंद्र भी बनते जा रहे हैं.
निष्कर्ष
महाराजा हरि सिंह की 130वीं जयंती का यह उत्सव जम्मू और कश्मीर के हिंदू समुदाय के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है. दशकों बाद, यह समुदाय अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पुनः स्थापित करने के लिए एकजुट हो रहा है. इस भव्य उत्सव ने यह साबित किया कि महाराजा हरि सिंह की विरासत अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है, और यह जम्मू के लोगों को उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और दृढ़ आत्मा के सामूहिक उत्सव में एकजुट कर रही है.
जम्मू की पहचान एक बार फिर से ‘मंदिरों के शहर’ के रूप में उभर रही है, जो विश्वभर के हिंदुओं के लिए गौरव का प्रतीक है. महाराजा हरि सिंह की जयंती का यह उत्सव केवल उनके योगदान की याद नहीं दिलाता, बल्कि भविष्य में जम्मू की हिंदू विरासत को और अधिक सशक्त करने की दिशा में भी एक प्रेरणा है.