न्यूयॉर्क, 23 मार्च . वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसी प्रक्रियाएं खोजी हैं जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं (इम्यून सेल्स) के असामान्य कार्य को समझने में मदद कर सकती हैं. यह असंतुलन क्रोहन रोग नामक इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) का कारण बन सकता है.
क्रोहन रोग पाचन तंत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट) में लंबे समय तक सूजन पैदा करता है. इसके लक्षणों में पेट दर्द, दस्त, वजन घटना, खून की कमी (एनीमिया) और थकान शामिल हैं.
हमारी आंतों में मौजूद सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें इन्ट्राएपिथीलियल लिम्फोसाइट्स (गामा डेल्टा आईईएल) कहा जाता है. ये कोशिकाएं संक्रमण से बचाव करती हैं और आंत की सुरक्षा में मदद करती हैं. लेकिन जिन लोगों को क्रोहन रोग होता है, उनमें ये गामा डेल्टा आईईएल अक्सर कम हो जाती हैं.
माउंट सिनाई विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह अध्ययन पहली बार यह दर्शाता है कि गामा डेल्टा आईईएल कोशिकाएं सूजन को नियंत्रित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. जब निचली छोटी आंत में लंबे समय तक सूजन बनी रहती है, तो ये कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं.
माउंट सिनाई के इकन स्कूल ऑफ मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर करेन एडेलब्लम ने बताया, “पहले की जांचों में, मरीजों के ऊतकों (बायोप्सी) में सक्रिय आईबीडी (आंतों की सूजन) वाले लोगों में गामा डेल्टा आईईएल कोशिकाओं की कमी देखी गई. लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि इन कोशिकाओं की कमी बीमारी का कारण है या इसका नतीजा.”
अब यह नया अध्ययन, जो साइंस इम्यूनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, यह दिखाता है कि क्रोहन रोग विकसित होने से कई हफ्ते पहले ही इन कोशिकाओं की संख्या घटने लगती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि गामा डेल्टा आईईएल कोशिकाओं की कमी को बीमारी के फिर से होने (रिलैप्स) या इलाज के असर को समझने के लिए संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा, यदि भविष्य में ऐसी दवाएं विकसित की जाएं जो इन कोशिकाओं की कार्यक्षमता को बढ़ाएं, तो यह आईबीडी रोगियों के लिए एक नया उपचार हो सकता है और संभावित रोगियों को इस बीमारी से बचाने में मदद मिल सकती है.
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