शोधकर्ताओं ने गुर्दे की बीमारियों के लिए नए बायोमार्कर का पता लगाया

नई दिल्ली, 25 मई . एक शोध में शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक का उपयोग कर नेफ्रोटिक सिंड्रोम से जुड़ी गुर्दे की बीमारियों के लिए नए बायोमार्कर का पता लगाया है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम गुर्दे की बीमारी है. इस सिंड्रोम से किडनी को नुकसान पहुंचता है. इस बीमारी में मरीज के मूत्र से बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन निकलता है. इसमें मरीज के खून में निम्‍न प्रोटीन स्तर के साथ हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ट्राइग्लिसराइड स्तर, रक्त के थक्के और सूजन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध के मुताबिक शोधकर्ताओं ने रोग की प्रगति पर नजर रखने के लिए एक विश्वसनीय बायोमार्कर के रूप में ‘एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडीज’ की पहचान की. यह किडनी की बीमारी के इलाज के लिए नई राहें खोलता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम गुर्दे की बीमारियों से जुड़ा है जिसमें मेम्ब्रेनस नेफ्रोपैथी (यह एक किडनी रोग है जो किडनी के फिल्टर को नुकसान पहुंचाता है) और फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस (गुर्दे के छोटे फिल्टर में घाव) जैसी बीमारियां शामिल हैं.

शोधकर्ताओं के अनुसार, यह सिंड्रोम गुर्दे को फिल्टर करने के लिए जिम्मेदार पोडोसाइट्स कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है जिससे मूत्र में प्रोटीन लीक होने लगता है.

ऐसी स्थितियों का निदान करने के लिए, शोधकर्ताओं ने एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी का विश्वसनीय रूप से पता लगाने के लिए एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट परख (एलिसा) के साथ इम्युनोप्रेसेपिटेशन को मिलाकर एक नई तकनीक पेश की.

अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक डॉ. निकोला एम टॉमस ने कहा, ”एक विश्वसनीय बायोमार्कर के रूप में एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी की पहचान की गई है जो हमारी हाइब्रिड इम्युनोप्रेजर्वेशन तकनीक के साथ मिलकर हमारी नैदानिक क्षमताओं को बढ़ाती है और नेफ्रोटिक सिंड्रोम के साथ गुर्दे के विकारों में रोग की प्रगति की बारीकी से निगरानी करने के लिए नए रास्ते खोलती है.”

निष्कर्षों से पता चला कि एंटी नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी एमसीडी वाले 69 प्रतिशत वयस्कों और आईएनएस (इडियोपैथिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम) वाले 90 प्रतिशत बच्चों में प्रचलित थे, जिनका इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं से इलाज नहीं किया गया था.

शोधकर्ताओं ने कहा, “महत्वपूर्ण बात यह है कि इस ऑटोएंटीबॉडी का स्तर रोग गतिविधि से संबंधित है जो रोग की प्रगति की निगरानी के लिए बायोमार्कर के रूप में उसकी क्षमता का सुझाव देता है.”

नेफ्रोटिक सिंड्रोम कैंसर, मधुमेह, सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, मल्टीपल मायलोमा और एमाइलॉयडोसिस जैसी बीमारियां, अनुवांशिक विकार, प्रतिरक्षा विकार, संक्रमण (जैसे गले में खराश, हेपेटाइटिस, या मोनोन्यूक्लिओसिस) और कुछ दवाओं का उपयोग से हो सकता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम हर उम्र में होने वाली बीमारी है. यह 2 से 6 वर्ष की आयु वाले बच्चों में सबसे आम है. यह बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलती है.

एमकेएस/