रामवृक्ष बेनीपुरी : कलम के ऐसे जादूगर जिन्होंने अपनी लेखनी से बजाया क्रांति का बिगुल

नई दिल्ली, 9 सितंबर . साहित्य यूं तो समाज का आईना है, लेकिन क्या आपको यह पता है कि साहित्य ने पूरी दुनिया में कई क्रांतियों को जन्म लेने और उसे मकसद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक तरफ जहां हमारे स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, दूसरी तरफ अखबार, साहित्य और अन्य पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांति का एक ज्वार उठ रहा था.

ऐसे ही एक हिंदी साहित्यकार हुए रामवृक्ष बेनीपुरी, जिन्होंने अपनी समृद्ध रचनाओं के जरिये साहित्य पटल पर अपनी अमिट छाप तो छोड़ी ही, साथ ही उनके साहित्य ने क्रांति का एक ज्वार भी समाज में पैदा कर दिया. सामाजिक असमानता, लोगों के प्रति नफरत, जातिवाद से रामवृक्ष हमेशा विचलित होते रहे. बेनीपुरी ‘पतितों के देश में’, ‘अंबपाली’, ‘माटी की मूरतें’ जैसे कालजयी कहानियों की रचना करने वाले ‘कलम के जादूगर’ थे. 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में जन्मे बेनीपुरी के बारे में किसी ने तब यह नहीं सोचा था कि एक दिन इस बच्चे की कलम क्रांति का संदेश लिखेगी और उसे पूरा भारत दोहराएगा.

जीवन का प्रारंभिक काल पटना में गुजारने के दौरान उनकी मुलाकात तमाम बड़े साहित्यकारों से हुई, जो उन दिनों अपनी रचनाओं के जरिये सामाजिक कुरीतियों पर गहरी चोट किया करते थे. साहित्य में रचे-बसे बेनीपुरी की तरूणाई आजाद भारत की लड़ाई की साक्षी बनी. आजादी के आंदोलन के दौरान बेनीपुरी कई बार जेल भी गए. उन्होंने जेल में रहते हुए ‘मंगल हरवाहा’ और ‘सरयुग भैया’ जैसी रचनाएं की, जो आज की साहित्यिक पीढ़ी के लिए अमूल्य धरोहर है.

कलम के माध्यम से क्रांति का बिगुल फूंकने वाले बेनीपुरी 1942 में ‘अगस्त क्रांति आंदोलन’ के दौरान हजारीबाग जेल में रहे. वहीं, ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय जयप्रकाश नारायण के हजारीबाग जेल से भागने में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनका साथ दिया और उनके निकट सहयोगी रहे. अपने जीवन के नौ साल जेल की सलाखों में गुजारने वाले बेनीपुरी जेल में भी शान्त नहीं बैठे. इस दौरान उन्होंने आजादी के मतवालों को प्रेरित करने वाली कई रचनाएं लिखी.

बेनीपुरी की प्रसिद्ध रचना ‘पतितों के देश में’ सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियां को उजागर करने के साथ-साथ समाज को आईना दिखाती है. जातिवाद का विरोध करते हुए उन्होंने हजारीबाग जेल में ‘जनेऊ तोड़ो अभियान’ चलाया था. पत्रकार और साहित्यकार के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले बेनीपुरी ने लगभग एक दर्जन पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया. भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और नाटककार के रूप में तमाम विधाओं की लगभग 80 पुस्तकों का उन्होंने लेखन किया. लेखनी में निर्भिकता और समाजिक स्तर पर चैतन्यता के कारण उनकी राजनीतिक चेतना समाजवादी और समता के विचारों पर केंद्रित थी.

‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर ने बेनीपुरी के व्यक्तित्व के बारे में कहा था, “रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी, जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती. वे उस आग के भी धनी थे, जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है. जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है. बेनीपुरीजी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे.”

चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की पत्नी, गेहूं और गुलाब, जंजीरें और दीवारें उनकी ओर से लिखे गए प्रमुख निबंध हैं. वहीं, सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गांवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा जैसे तमाम नाटक लिखे. ‘पतितों के देश में’ उनकी ओर से लिखी गई कालजयी रचना मानी जाती है. तमाम उपलब्धियों को हासिल करने वाले साहित्य जगत के नक्षत्र पुरूष रामवृक्ष बेनीपुरी का निधन 9 सितंबर 1968 को हुआ था. उनके सम्मान में बिहार सरकार की ओर से हर साल ‘अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ दिया जाता है.

एकेएस/एबीएम