पटना, 3 अगस्त . बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अब अपनी-अपनी तैयारी में जुट गए हैं और मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश शुरू हो गई है. इसे लेकर कांग्रेस ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.
कांग्रेस इस चुनाव के जरिए अपनी खोई जमीन तलाशने को लेकर उत्सुक है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार राम और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारू ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस आलाकमान ने भी इस ‘राम’ और ‘कृष्ण’ की जोड़ी पर विश्वास व्यक्त किया है. आजादी के बाद से ही कांग्रेस का बिहार में एकछत्र राज रहा है, लेकिन सोशल इंजीनियरिंग, जातीय राजनीति और क्षेत्रीय दलों के उभार ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया और उसकी जमीन छीन ली.
आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राजद के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी और 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें 19 सीटों पर जीत दर्ज की. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.48 प्रतिशत वोट मिला था. उससे पहले, यानी 2015 के चुनाव में कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 27 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस को 6.66 प्रतिशत ही वोट मिले थे.
वर्ष 1990 के बाद बिहार में कांग्रेस गठबंधन के सहारे भले ही राज्य की सत्ता में भागीदार बनी, लेकिन खुद की स्थिति कमजोर होती गई. इस चुनाव में अब कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. Lok Sabha में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी इस साल लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं. राहुल गांधी पांच बार बिहार आ चुके हैं और यह संदेश दे चुके हैं कि उनकी कैंपेनिंग आक्रामक रहेगी और दलित वोटर्स पर केंद्रित रहेगी.
इसके अलावा कांग्रेस इस चुनाव में वोटर्स की छटनी को मुद्दा बनाएंगे. कांग्रेस यह भी साफ कर चुकी है कि राहुल राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ प्रचार अभियान में शामिल होंगे. कांग्रेस माई-बहिन सम्मान योजना और कई वादों के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी और नीतीश कुमार की सेहत, आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दे को लेकर मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास करेगी.
बहरहाल, कांग्रेस इस चुनाव में अलग रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है और पूरा जोर लगाएगी. अब देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस कितनी सफल हो पाती है.
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एमएनपी/डीएससी