
राजस्थान में बाघों के गायब होने के मामले में रणथम्भौर टॉप पर है. रणथम्भौर में दो दशक में करीब 50 बाघ, बाघिन और शावक गायब हुए है. इन सबके बावजूद यहां बाघों को रेडियों कॉलर नहीं लगाए गए है. राजस्थान में साल 2005 में सरिस्का से बाघ विलुप्त हो गए थे. इस समय रणथम्भौर में भी बाघों की संख्या मात्र 22 रह गई थी. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रणथम्भौर आए थे. केन्द्र सरकार ने बाघ संरक्षण के लिए टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया था. इसी कड़ी में यहां के बाघ बाघिनों को रेडियों कॉलर लगाए थे. जिसके बाद यहां के बाघ बाघिन के रेडियों कॉलर हटा दिए गए.
तत्कालीन वन मंत्री ने हटवाए थे रेडियो कॉलर
साल 2010 में तत्कालीन वन मंत्री बीना काक ने रडियो कॉलर से निकलने वाली तरंगों का हवाला देकर रेडियो कॉलर हटवाया दिए थे. काक का कहना था कि रेडियों कॉलर से निकलने वाली तरंगे बाघ बाघिनों के लिए हानिकारक रहती है. इसी वजह से मध्यप्रदेश और राजस्थान के टाइगर रिजर्व से रेडियो कॉलर हटा दिए गए थे. इसी कड़ी में रणथम्भौर के बाघ बाघिनों रेडियों कॉलर हटा दिए गए थे.
क्या होता है रेडियो कॉलर
अमूमन रेडियो कॉलर दो तरह के होते है. बाघ बाघिन के लिए दोनों प्रकार के रेडियो कॉलर का उपयोग किया जा सकता है. सेटेलाइट बेस्ड GPS (Global Positioning System) व रेडियो बेस्ड VHF (बहुत उच्च आवृत्ति) रेडियो कॉलर से घर बैठे ही अधिकारी उस बाघ बाघिन की हर गतिविधि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिस बाघ बाघिन के रेडियो कॉलर लगा होता है. सेटेलाइट सिस्टम से कंप्यूटर, टीवी अथवा एलईडी में भी उनकी सारी गतिविधियां, टेरेटरी की जानकारी मिलती रहती है. इसकी कीमत करीब 5 लाख रुपए होती है.
फिलहाल रणथम्भौर में केवल एब बाघ के लगा है रेडियो कॉलर
फिलहाल रणथम्भौर में केवल एक बाघ के रेडियो कॉलर लगा हुआ है. यह रेडियो कॉलर रणथम्भौर के बाघ टी-104 के लगा हुआ है. फिलहाल बाघ टी-104 रणथम्भौर के भिड एनक्लोजर में बंद है. इस बाघ का रेडियो कॉलर भी जल्द ही बदला जा सकता है. क्योकीं अमूमन एक रेडियों कॉलर की उम्र ढाई से तीन साल होती है. ऐसी संभावना जताई जा रही है. इसी कारण से बाघ टी-104 का रेडियो कॉलर भी हटाना पड़ेगा.