वायनाड में आरएसएस कार्यकर्ता कर रहे लोगों की मदद, यहां से खास नाता होने का दावा करने वाले राहुल गांधी 3 दिन बाद पहुंचे

नई दिल्ली, 1 अगस्त . केरल के वायनाड में हुए लैंडस्लाइड में अब तक 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि कई लोग लापता हैं. एक तरफ जहां हादसे के बाद से सेना और एनडीआरएफ के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता ग्राउंड जीरो पर लोगों की मदद में दिन रात जुटे हैं. आरएसएस के कार्यकर्ता बिना किसी भेदभाव के लोगों के लिए राहत और बचाव कार्य के साथ-साथ खाने-पीने का भी इंतजाम कर रहे हैं. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी के हादसे के 3 दिन बाद वायनाड देरी पहुंचे तो लोगों में इसको लेकर आक्रोश देखने को मिला. वायनाड से खास नाता होने के बाद भी राहुल गांधी ने सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के जरिए हादसे पर अपना दुख जाहिर किया.

हादसे के तीन दिन गुजर जाने के बाद गुरुवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी वायनाड पहुंचे. लेकिन, उनके वायनाड देरी से जाने को लेकर सोशल मीडिया पर अब प्रश्न चिन्ह खड़े होने लगे. बता दें कि राहुल गांधी वायनाड सांसद भी रह चुके हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यहां से जीत दर्ज की. हालांकि रायबरेली और वायनाड संसदीय सीट से चुनाव जीतने के बाद उन्होंने वायनाड सीट छोड़ दी और अब वायनाड से उनकी बहन प्रियंका गांधी संभावित उम्मीदवार बनाई गई हैं. ऐसे में दोनों का प्रभावित इलाकों में ना पहुंचने से लोगों में आक्रोश दिखा.

वहीं,आरएसएस जिनको कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी दिन रात कोसते रहते हैं और उनकी राष्ट्र भक्ति पर सवाल उठाते रहते हैं. लेकिन, आज बिना किसी भेदभाव वहां संघ के कार्यकर्ता लोगों की मदद कर रहे हैं. जिसके बाद कांग्रेस और राहुल गांधी खुद लोगों के निशाने पर आ गए हैं.

कांग्रेस ने सोशल मीडिया के जरिए आरएसएस की छवि खराब करने की कोशिश की और कई बार बेतुकी टिप्पणी कर चुके हैं. 20 सितंबर 2016 को राहुल गांधी ने अपने पोस्ट में लिखा था कि ”भाजपा और आरएसएस के लोग धर्म की दलाली करते हैं. इनको न गाय से प्यार है, न धर्म से इनको सिर्फ सत्ता से प्यार है.”

25 मार्च 2022 को राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा था, ”मेरा मानना है कि आरएसएस व संबंधित संगठन को संघ परिवार कहना सही नहीं, परिवार में महिलाएं होती हैं, बुजुर्गों के लिए सम्मान होता है, करुणा और स्नेह की भावना होती है-जो आरएसएस में नहीं है. अब आरएसएस को संघ परिवार नहीं कहूंगा.”

21 जून 2024 में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरएसएस के प्रोग्राम में सरकारी कर्मचारियों के प्रतिबंध हटाए जाने के बाद लिखा, ”मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है.”

एक तरफ जहां राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी आरएसएस के खिलाफ विवादित कमेंट करते रहते हैं. वहीं आरएसएस के कार्यकर्ता दिन रात उनके संसदीय क्षेत्र रह चुके वायनाड में पीड़ितों की सेवा और मदद करने में जुटे हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब आरएसएस के कार्यकर्ता देश किसी भी हिस्से में आई प्राकृतिक आपदा में लोगों की मदद के लिए आगे आए हों. ऐसे कई उदाहरण हैं जब संघ के कार्यकर्ता लोगों की मदद कर चुके हैं.

सिक्किम बाढ़ : 3 अक्टूबर, 2023 में तिस्ता नदी में भयंकर बाढ़ आई, जिससे तिस्ता बाज़ार और उसके आस-पास के इलाके प्रभावित हुए. उत्तर बंगाल सेवा भारती द्वारा प्रभावित समुदायों की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 40 तरह की दवाइयां भी वितरित की गई.

केरल बाढ़ (10 अगस्त, 2020)- भूस्खलन से प्रभावित इडुक्की राजमलाई में बचाव कार्य के लिए सेवा भारती ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. राजमाला पेट्टीमुडी में भूस्खलन में सैकड़ों की संख्या में फंसे लोगों में से 21 से ज्यादा लोगों को सेवा भारती दल के लोगों ने बचाया था. राष्ट्रीय सेवा भारती के केरल घटक को 2018 और 2019 में केरल में बाढ़ के दौरान अद्वितीय राहत गतिविधियों के लिए दथोपंथ ठेंगड़ी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

केरल बाढ़ (20 अगस्त, 2018) केरल में बाढ़ पीड़ितों की सहायता में तीनों सेनाओं और एनडीआरएफ के साथ सेवा भारती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों स्वयंसेवकों ने अपना सहयोग दिया. संघ के स्वयंसेवक सरकारों द्वारा भेजी राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचाने के काम में भी लगे रहे. स्वयंसेवकों ने लोगों को दुर्गम स्थानों से भी निकालने में मदद की.

बिहार बाढ़ (12 जुलाई, 2015) सेवा भारती और आरएसएस के करीब 11,000 कार्यकर्ता बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लगे. करीब 66,000 पीड़ितों तक पहुंचे. बाढ़ पीड़ितों को हर दिन भोजन के पैकेट और दवाइयां दी गई.

गुजरात बाढ़ (12 जुलाई, 2015) – सेवा भारती के स्वयंसेवकों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 80,000 भोजन के पैकेट, 4,500 दूध के पाउच, 1,11,000 पानी के पाउच वितरित किए. लोगों की जरूरतों को पूरा करने और पीड़ितों की तुरंत मदद करने के लिए सूरत में 4 स्थानों पर राहत केंद्र शुरू किए.

उत्तराखंड बाढ़ (16 जून, 2013) उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखंड में दोपहर के समय बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जो 2004 की सुनामी के बाद देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदा बन गई. बाढ़ से 4,550 गांव प्रभावित हुए.

आपदा राहत प्रयासों के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने 10 बिलियन (120 मिलियन यूएस डॉलर) सहायता पैकेज की घोषणा की थी पर स्थानीय लोगों की मदद करने के लिए सेना के जवानों के साथ सेवा भारती और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. स्वयंसेवक राहत सामग्री लेकर सबसे पहले पहुंचे. उन्होंने सेना के हेलीकॉप्टरों के लिए हेलीपैड तैयार किए. सेना के साथ मिलकर न केवल लोगों की जान बचाई, बल्कि पीड़ितों को दवाइयां भी उपलब्ध कराई.

इसके अलावा 29 नवंबर 2020 को चक्रवात निवार, 11 अक्टूबर 2018 को चक्रवात तितली, 1 दिसंबर 2017 को ओखी चक्रवात, 19 नवंबर 1977 को आंध्र प्रदेश-मुलापलेम चक्रवात के दौरान भी आरएसएस कार्यकर्ता मदद के लिए आगे आ चुके हैं.

एसके/जीकेटी