लखनऊ, 5 अप्रैल . आजादी के बाद आई राजनीतिक उदासीनता ने पूर्वांचल से विकास की चमक को लगातार कम किया. मानों सूरज अस्त हो रहा हो, लेकिन पिछले सात वर्षों में इस क्षेत्र में हुए विकास ने एक आस जगाई है. पूर्वांचल अब विकास के साथ चल पड़ा है. एक-एक कर बंद होने वाली चीनी मिलों के दिन तो अब बहुर ही रहे हैं, 1990 में बंद होने वाला गोरखपुर खाद कारखाना भी चल पड़ा है.
गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) और नोएडा की स्थापना एक ही मकसद से एक ही साथ हुई थी, लेकिन दोनों के विकास में जमीन-आसमान का अंतर था, जो अब भरना शुरू हुआ है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरीश पांडेय कहते हैं कि सात साल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बहुत कुछ बदल गया है. बतौर सांसद उन्होंने गोरखपुर को केंद्र मानकर पूर्वांचल के विकास के बाबत जो सोचा था, संकल्पना की थी. उसे साकार कर साबित किया कि उनमें कल्पना के साथ उन्हें साकार करने का माद्दा भी है. लगातार जारी बदलावों की वजह से अब पूर्वांचल के माथे से पिछड़ेपन का दाग मिटने लगा है.
उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र के कायाकल्प, शिक्षा क्षेत्र के हब व औद्योगिक वातावरण के सृजन के साथ ही हर एक क्षेत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश अब पश्चिमी यूपी के साथ कदमताल कर रहा है. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, बलिया लिंक एक्सप्रेसवे समेत सिक्स और फोरलेन सड़कों के संजाल ने इस पिछड़े इलाके की सीधी और सुगम पहुंच प्रदेश और देश की राजधानी तक कर दी है.
सरकार ने इस क्षेत्र के एयर कनेक्टिविटी को भी फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है. कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट व आजमगढ़ में हवाई अड्डेे का सपना साकार किया.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा बताते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल था. उस पर 1978 में दस्तक देने वाली इंसेफेलाइटिस ने हर साल हजारों नौनिहालों को लीलना शुरू कर दिया. मरीजों के बोझ और संसाधनों के अभाव में इलाज का एकमात्र केंद्र गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज खुद ही बीमार हो गया था.
इंसेफेलाइटिस के अलावा डेंगू, कालाजार, हैजा जैसी बीमारियों का तांडव अलग था. यह सिलसिला 2016 तक बदस्तूर जारी रहा, लेकिन बीते सात वर्ष में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र में न केवल आमूलचूल परिवर्तन आया, बल्कि यह इलाका खुद में मेडिकल हब के रूप में विकसित होने लगा.
अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ होने का सिलसिला चल रहा है. सरकार ने पीएचसी स्तर पर इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर बनाकर इस बीमारी पर 95 प्रतिशत तक काबू पा लिया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर भी बोझ कम हुआ है. अब यहां सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक जैसी सुविधा उपलब्ध है. हर जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिल चुकी है. इनमें से अधिकांश ने मरीजों की सेवा भी शुरू कर दी है. इन मेडिकल कॉलेजों से मरीजों का पूर्णत: इलाज हो रहा है.
बड़ी संख्या में एमबीबीएस की सीटें मिलने से युवाओं को करियर का शानदार विकल्प भी मिला है. गोरखपुर में स्थापित एम्स समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ बिहार और नेपाल तक के करोड़ों लोगों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है. उन्होंने ने बताया कि पूर्वांचल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि आधारित है. यहां गन्ने की प्रचुर खेती के कारण ही इसे चीनी का कटोरा कहा जाता था. लेकिन, हुक्मरानों की उपेक्षा के कारण चीनी मिलें एक-एक कर बंद होने लगीं.
योगी सरकार ने न केवल बस्ती जिले के मुंडेरवा और गोरखपुर के पिपराइच में हाईटेक चीनी मिलें खोलीं, बल्कि आजमगढ़ की चीनी मिल की क्षमता का विस्तार भी किया. पिपराइच व मुंडेरवा की मिलें सल्फरलेस चीनी बनाती हैं, साथ ही कोजेन प्लांट से बिजली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हैं. किसानों के हित में ही गोरखपुर में दशकों से बंद खाद कारखाने की जगह दोगुनी क्षमता का नया कारखाना शुरू हुआ है. किसानों की बड़ी समस्या सिंचाई की रही है. इसके लिए सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को समर्पित कर दी गई है. पर्याप्त बिजली मिलने से उन इलाकों में भी सिंचाई का संकट समाप्त हुआ है, जहां निजी ट्यूबवेलों पर ही आश्रित रहना पड़ता है.
आजमगढ़ में तो महाराजा सुहेलदेव के नाम पर विश्वविद्यालय बन गया है. गोरखपुर में सैनिक स्कूल और स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट का अकल्पनीय उपहार मिला है. प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय भी पूर्वांचल के गोरखपुर में ही स्थापित हुआ है. अब पढ़ाई के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के युवाओं को बाहर जाने की जरूरत नहीं रह गई है.
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