आस्था का महापर्व : ऐतिहासिक नालंदा जिले में छठ पूजा की तैयारी शुरू

नालंदा, 4 नवंबर . बिहार में आस्था के महापर्व छठ पूजा मनाने के लिए नदी, तालाब किनारे घाट बनाने का कार्य तेज कर दिया गया है.

5 नवंबर से चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व नहाय खाय के साथ शुरू हो जाएगा. इस पर्व को मनाने के पीछे की मान्यता और महत्व के बारे में ऐतिहासिक नालंदा जिला में स्थित बिहारशरीफ के बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के उपाध्यक्ष अमरकांत भारती ने से बातचीत की.

उन्होंने बताया कि आस्था का महापर्व छठ हमारी संस्कृति और सनातन से जुड़ा है. देशभर के लोग जहां उगते हुए सूर्य की आराधना करते हैं. वहीं, हम बिहार के लोग डूबते हुए सूरज की भी आराधना करते हैं. भगवान भास्कर सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण के पौत्र ने इस पर्व की शुरुआत बिहार से की थी. जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से स्वास्थ्य को भी काफी लाभ होता है.

चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. पर्व नहाय-खाय के साथ शुरु हो जाता है. पहले दिन कद्दू-भात का भोजन तैयार किया जाता है. दूसरे दिन छठ व्रती खरना करती हैं. तीसरे दिन डूबते सूर्य की आराधना की जाती है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही यह महापर्व संपन्न हो जाता है. इसके बाद छठ पूजा का प्रसाद परिवार के लोगों में बांटा जाता है. इस दौरान छठ व्रती करीब 36 घंटों को कठोर निर्जला व्रत में रहती हैं. इस व्रत के करने से शरीर के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. यह सनातन धर्म की वैज्ञानिकता का प्रमाण है.

से बातचीत के दौरान पुजारी राजवीर चंद्रवंशी ने छठ पूजा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा सूर्य देव और उनकी बहन सावित्री की आराधना का पर्व है. बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व है. नहाय-खाय से पर्व की शुरुआत होती है. पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. यह कठोर नियम और पवित्रता का पर्व है, जिसमें व्रती के साथ उनके परिवार भी नियमों का पालन करते हैं. खास बात यह है कि कई पुरुष भी छठ व्रत को करते हैं.”

डीकेएम/एबीएम