नई दिल्ली, 13 जून . प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्र विनायकं… भूत और गण आदि के देव और उमा के पुत्र भक्तों के शोक का न केवल नाश करते हैं बल्कि विघ्न बाधा को भी खत्म करते हैं. बाबा विश्वनाथ के दिए वरदान के अनुसार जो कोई भी सर्वप्रथम गजानन की पूजा करता है, उसे किसी तरह की समस्याओं या बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता. 14 जून को ‘संकष्टी चतुर्थी’ है. गौरी पुत्र को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजन और पाठ का महात्म्य है.
हिंदू धर्म में हर माह की चतुर्थी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. यह दिन भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र गणपति को समर्पित है. आषाढ़ मास की चतुर्थी का भी विशेष महत्व है. धर्म शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी संकटों को हरने वाला है.
दृग पंचांग के अनुसार, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 14 जून को दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर शुरू होकर 15 जून को दोपहर 3 बजकर 51 मिनट तक रहेगी.
काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्मशास्त्र के जानकार पंडित विनय त्रिपाठी बताते हैं कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत कई समस्याओं का निवारण करता है. इस बार चतुर्थी तिथि 14 जून को है और इस दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और ब्रह्म योग का भी संयोग बन रहा है.
ऐसे में गणेश संकट नाशक स्त्रोत, गणेश चालीसा का पाठ करने के साथ ही दूब, मोदक, सिंदूर आदि चढ़ाने से भी भगवान की कृपा मिलती है. उन्होंने गणपति का पूजन कैसे करें, इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी.
पंडित विनय त्रिपाठी ने बताया, “सर्वप्रथम गणपति को पंचामृत (जल, घी, दही, दूध, शहद) जल या गंगाजल से स्नान करवाना चाहिए. इसके बाद देसी घी और सिंदूर का उनके शरीर पर लेप करना चाहिए. इसके बाद क्रमश: रोली, मौली, अक्षत, इत्र, जनेऊ, अबीर-बुक्का चढ़ाने के साथ पान, सुपाड़ी, लौंग, इलाइची आदि भी चढ़ाना चाहिए. इसके साथ ही गेंदा या गुड़हल की माला के साथ 3, 11 या 21 दूब भी गजानन को चढ़ाना चाहिए.
इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित कर मोदक, केला, हलवा आदि का भगवान को भोग लगाना चाहिए और संकट नाशक स्त्रोत के साथ-साथ अन्य श्लोक का पाठ करना चाहिए.
नारद पुराण में वर्णित संकष्ट मंत्र का भी पाठ करना चाहिए. जो इस प्रकार है- प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्. भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये. प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्. तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्. लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च. सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्. नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्. एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्. द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः. न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो.
इसके अलावा, पूजा के दौरान गणपते नम: का भी निरंतर पाठ करना चाहिए.
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एमटी/केआर