जॉर्डन, लीबिया और सीरिया जैसे देशों का इजरायल को समर्थन देना आश्चर्य की बात : प्रफुल्ल बख्शी

नई दिल्ली, 2 अक्टूबर . ईरान ने हिजबुल्ला नेता हसन नसरल्लाह की मौत का बदला लेने के लिए मंगलवार की रात में इजरायल पर करीब 180 मिसाइलें दागी. इसके बाद पूरे मिडिल ईस्ट में हालात और अस्थिर हो गए हैं. भारत और भारत के रक्षा विशेषज्ञ लगातार इस पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं. देश के जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ और वायु सेना में कई उच्च स्तरीय पदों पर जिम्मेदारी संभाल चुके प्रफुल्ल बख्शी अभी इलाके में और तनाव बढ़ता देखते हैं.

वह से इस मामले पर विशेष बातचीत करते हुए कहते हैं, “मध्य पूर्व में तनाव बढ़ने वाला है क्योंकि हाल ही में ईरान ने इजरायल पर हमला किया और इजरायल ने इसका जवाब दिया. इजरायल लेबनान में घुसपैठ कर रहा है. युद्ध की स्थिति बनती नजर आ रही है. इसके अलावा, ईरान के समर्थक समूह जैसे हिज़्बुल्लाह, हमास और हूती अपने-अपने तरीके से खेल रहे हैं और इजरायल के समर्थकों पर हमले कर रहे हैं. इसके जवाब में, अमेरिकी और अन्य सहयोगी समुद्री बेड़े भी सक्रिय हो गए हैं. इस समय क्षेत्र कई हिस्सों में बंट चुका है. एक पक्ष इजरायल के समर्थन में है और दूसरा ईरान के पक्ष में. आश्चर्य की बात यह है कि कुछ पारंपरिक इस्लामी देश जैसे जॉर्डन, लीबिया और सीरिया इजरायल को समर्थन दे रहे हैं. हालिया हमले में जॉर्डन और सऊदी अरब ने इजरायल की मदद की, जबकि इजरायल ने ईरान के भीतर निशाना बनाया.”

इसके बाद क्षेत्र में बदलाव की बात पर वह कहते हैं, “यह पूरा परिदृश्य अब एक बड़े परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है, लेकिन सीमा पर स्थिति बेहद संवेदनशील है. इसका असर विश्व व्यापार, परिवहन, शिपिंग, पर्यटन, और नागरिक उड्डयन पर पड़ रहा है, जो अंततः वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. इससे एक और संभावना यह बनती है कि चीन दक्षिण चीन सागर में अपने प्रभुत्व को बढ़ाने की कोशिश करेगा, और इस संघर्ष का लाभ उठाकर फिलीपींस या ताइवान पर दबाव बना सकता है. ईरान ने हाल ही में रूस से संपर्क किया है, इसलिए यह देखना होगा कि रूस किस तरह से इस मामले में शामिल होता है. क्या वह अधिक आपूर्ति करेगा, पैसे देगा, या हथियार मुहैया कराएगा. इस समय, पूरा वातावरण एक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, और कई लोग इसे संभावित विश्व युद्ध की दिशा में बढ़ता हुआ मान रहे हैं. अब भारत की भूमिका क्या होगी? भारत इस संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होगा, लेकिन सभी देशों की अपेक्षा है कि भारत एक मध्यस्थ की भूमिका निभाएगा या शांति का आह्वान करेगा.”

वह आगे कहते हैं, “भारत को इजरायल और ईरान के बीच एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखा जा सकता है, और यहां तक कि यूक्रेन और रूस के बीच भी उसे ऐसा ही प्रस्ताव दिया जा सकता है. यह सब इस पर निर्भर करता है कि दोनों पक्ष भारत को स्वीकार करते हैं या नहीं. भारत को अब इस भूमिका को निभाने के लिए आगे आना होगा.”

पीएसएम/जीकेटी