झारखंड में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ ने पाई व्यापक सफलता

रांची, 26 जून . प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की शुरुआत 10 सितंबर 2020 को हुई थी. इस योजना का उद्देश्य मछली पालन क्षेत्र का समग्र विकास करना है, जिसमें मछुआरों का कल्याण भी शामिल है. झारखंड में इस योजना को जमीनी स्तर पर सफलता मिली है. झारखंड मत्स्य निदेशक एचएन द्विवेदी ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ राज्य में सफल रही है.

एचएन द्विवेदी ने समाचार एजेंसी को बताया कि सबसे पहले प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) वित्त वर्ष 2020-21 में शुरू हुई. पूर्व में बायोफ्लॉक तकनीक का उपयोग भारत में नहीं होता था. देश से बाहर यह तकनीक काम कर रही थी. यहां निशांत हैं, जिन्होंने बायोफ्लॉक तकनीक स्थापित किया है. वह ट्रेनिंग के लिए थाईलैंड भी गए थे. 2020-21 में इन्होंने 50 टैंक लिया और धीरे-धीरे इसको बढ़ा रहे हैं. एक टैंक से 250 से 300 किलोग्राम मछली का उत्पादन किया जा रहा है. एक क्रॉप तैयार होने में लगभग 6 महीने का समय लगता है. टैंक में तालाब की अपेक्षा मछली का उत्पादन ज्यादा और बेहतर तरीके से हो रहा है. नई प्रकार की मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है.

इस योजना के तहत 7 टैंक से लेकर 25 टैंक के यूनिट भी लगाए जा सकते हैं. यह योजना झारखंड में सफल है और तेजी से लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. योजना की सफलता को देखते हुए लोगों का इसमें विश्वास बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के झारखंड में सैकड़ों लाभार्थी हैं. हमने शुरू में इतनी बड़ी संख्या की उम्मीद नहीं की थी.

लाभार्थी निशांत कुमार कुमार ने को बताया,”मेरे फार्म का नाम किंगफिसरी फॉर्म है. हमने 2018 में इसे शुरू किया था. यह फॉर्म इंडिया का पहला कमर्शियल फॉर्म है, जहां पर एक साथ पांच तकनीक के साथ काम होता है. हमारे पास 74 टैंक है. हमारे पास रिजॉर्ट है, पार्क है, वाटर पार्क है. हम पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहे हैं.”

निशांत ने आगे बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत हम लोगों को 50 टैंक मिला था. सभी बायो फ्लैग टैंक थे. यह केंद्र सरकार की बेहद प्रभावशाली योजना है. प्रधानमंत्री मत्स्य पालन क्षेत्र को एक व्यवस्थित उद्योग के रूप में विकसित करना चाहते हैं, जिसमें यह योजना काफी अहम साबित हो रही है.

मछली उत्पादन के लिए बायोफ्लॉक आधुनिक व वैज्ञानिक तकनीक है. बायोफ्लॉक तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं. बायोफ्लॉक तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है.

पीएके/जीकेटी