हैदराबाद, 17 फरवरी . आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के बीच गठबंधन होने की संभावना है.
बीआरएस के कुछ नेताओं ने राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस को रोकने के लिए दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन या सहयोग की संभावना से इनकार नहीं किया है.
मीडियाकर्मियों के एक सवाल पर शनिवार को बीआरएस नेता के. कविता के जवाब ने राजनीतिक हलकों में चर्चा को बल दिया है.
बीआरएस और भाजपा के बीच संभावित गठबंधन की चर्चा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “यह पार्टी में मेरी समझ या क्षमता से परे है.”
बीआरएस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी कविता ने कहा, “मुझे इन दोनों पार्टियों के बीच हो रही चर्चा के बारे में कोई जानकारी नहीं है.”
अतीत के विपरीत, कविता ने सीधे तौर पर भाजपा के साथ गठबंधन से इनकार नहीं किया, जो खुद पार्टी के दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देता है.
कुछ बीआरएस नेताओं ने पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भाजपा-जद(एस) गठबंधन की तर्ज पर दोनों दलों के बीच गठबंधन की संभावना का संकेत दिया है. कर्नाटक में चुनाव हारने के कुछ महीने बाद, भाजपा ने देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी से हाथ मिला लिया.
बीआरएस की तरह जद(एस) भी भाजपा के साथ किसी भी तरह के गठबंधन का कड़ा विरोध कर रही थी. हालाँकि, अंततः कांग्रेस को रोकने के लिए गठबंधन करने का निर्णय लिया गया. बीआरएस नेताओं का मानना है कि उनकी पार्टी के कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवाने के बाद तेलंगाना में भी ऐसी ही स्थिति है.
मुख्य विपक्षी दल के कई नेताओं को अपने खेमे में लाकर कांग्रेस पार्टी खुद को मजबूत कर रही है जिससे बीआरएस दबाव में दिख रही है. बीआरएस के नौ लोकसभा सांसदों में से एक कांग्रेस में जा चुके हैं, जबकि कुछ प्रमुख नेता भी लोकसभा टिकटों के लिए दलबदल कर रहे हैं.
बीआरएस नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि भाजपा के साथ गठबंधन से कांग्रेस को रोकने में मदद मिल सकती है, जिसने राज्य की 17 लोकसभा सीटों में से 12 जीतने का लक्ष्य रखा है.
बीआरएस ने 2019 में नौ लोकसभा सीटें जीती थीं. भाजपा को चार और कांग्रेस को तीन सीटें मिली थीं. एआईएमआईएम ने हैदराबाद सीट बरकरार रखी.
राज्य में नए राजनीतिक समीकरण में बीआरएस खुद को मुश्किल स्थिति में पा रहा है. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि भाजपा के साथ खुला गठबंधन या सामरिक समझ उसे 2019 में जीती गई अधिकांश सीटों को बरकरार रखने में मदद कर सकती है.
हालाँकि, भाजपा नेताओं का एक वर्ग बीआरएस के साथ गठबंधन के विचार का विरोध कर रहा है क्योंकि उनका मानना है कि पार्टी न केवल चार लोकसभा सीटें बरकरार रखने की स्थिति में है बल्कि अपनी एक-दो सीटें बढ़ाने की स्थिति में है. उनमें से कुछ ने कथित तौर पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को बताया है कि बीआरएस के साथ कोई भी गठबंधन पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि विधानसभा चुनावों के बाद से जमीन पर कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है. उनका मानना है कि बीआरएस को पिछले चुनाव में जीती गई लोकसभा सीटों पर सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है.
बीआरएस के साथ गठबंधन का विरोध करने वाले भाजपा नेताओं ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि उनकी पार्टी ने विधानसभा में अपनी सीटों की संख्या में एक से बढ़ाकर आठ कर ली है. उन्हें यह भी भरोसा है कि मोदी फैक्टर के साथ और देश के अन्य हिस्सों में भाजपा के लिए अनुकूल माहौल को देखते हुए वह बीआरएस की तुलना में मजबूत स्थिति में है.
माना जा रहा है कि गठबंधन के प्रस्ताव पर शीर्ष स्तर पर चर्चा चल रही है. हालांकि राज्य भाजपा नेताओं का एक वर्ग इस विचार का विरोध कर रहा है, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व लेगा.
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एकेजे/