झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत: ‘मैया सम्मान योजना’ और सरकार के दावों पर सवाल

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए शुरू की गई ‘मैया सम्मान योजना’ को लेकर जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है. लेकिन हाल ही में हुई एक घटना ने सरकार के इन दावों की सच्चाई को उजागर कर दिया है. रांची के सदर अस्पताल के बाहर एक गर्भवती महिला को सड़क पर ही बच्चे को जन्म देने को मजबूर होना पड़ा, जो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को सामने लाता है.

घटना का पूरा विवरण:

घटना 11 अक्टूबर 2024 की है, जब रांची के काठीटांड़ की निवासी गुलशन खातून को प्रसव पीड़ा होने पर उनके परिवार वाले उन्हें रांची के सदर अस्पताल लेकर पहुंचे. वहां मौजूद महिला डॉक्टर ने उनकी स्थिति को देखते हुए उन्हें बेहतर चिकित्सा के लिए रिम्स (राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल) रेफर कर दिया. लेकिन समस्या तब खड़ी हो गई जब परिजनों को अस्पताल से एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हो सकी.

गुलशन खातून की स्थिति गंभीर थी और दर्द से कराहते हुए उन्हें तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता थी. परिवार के पास कोई साधन न होने के कारण उन्हें अस्पताल के बाहर ही रुकना पड़ा. अंततः, अस्पताल के बाहर सड़क पर ही गुलशन खातून ने बच्चे को जन्म दिया. यह घटना एक दर्दनाक और गंभीर लापरवाही का उदाहरण है, जिसने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवालिया निशान लगा दिया है.

सोशल मीडिया पर उठे सवाल और लोगों की प्रतिक्रिया:

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने जमकर नाराजगी जताई. X (पूर्व ट्विटर) पर यूजर्स ने सरकार और अस्पताल प्रशासन की कड़ी आलोचना की. एक यूजर ने लिखा, “रांची के सदर अस्पताल की व्यवस्था इतनी लचर है कि महिलाओं को सड़क पर बच्चे को जन्म देने को मजबूर होना पड़ रहा है. अगर बुनियादी सुविधाएं ठीक हो जाएं तो झारखंडवासियों को ‘मैया सम्मान योजना’ जैसी लोलीपॉप योजनाओं की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.”

एक अन्य यूजर ने लिखा, “झारखंड में दलितों और आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना भी एक चुनौती बन गया है. महिलाओं को इलाज कराने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है और इस तरह की घटनाएं सरकार की नाकामी को उजागर करती हैं.”

इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं न केवल सरकार के दावों को खारिज करती हैं, बल्कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति को भी उजागर करती हैं.

स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति:

झारखंड में सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद चिंताजनक है. राज्य में 23 जिला अस्पताल, 13 सब-डिविजनल अस्पताल, 90 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC), 330 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), और 3848 हेल्थ सब-सेंटर (HSC) हैं. लेकिन यह संरचना झारखंड की 4.06 करोड़ की आबादी के लिए पर्याप्त नहीं है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मानकों के अनुसार, एक लाख की आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए. लेकिन झारखंड में इस मानक से काफी कम डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी उपलब्ध हैं.

राज्य में कई अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की कमी के साथ-साथ, चिकित्सा उपकरणों की भी कमी है. इन समस्याओं की वजह से कई बार मरीजों को इलाज के अभाव में वापस भेज दिया जाता है. उदाहरण के लिए, हाल ही में धनबाद के एक सरकारी अस्पताल में एक मरीज को गंभीर हालत में लाया गया था, लेकिन अस्पताल में आवश्यक उपकरण न होने के कारण उसे इलाज के बिना ही वापस भेजना पड़ा.

स्वास्थ्य सेवाओं की इस हालत से झारखंड की जनता निराश है. जहां एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर हकीकत इससे बिलकुल विपरीत है.

सरकार की नीतियों पर सवाल:

हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी. इनमें मैया सम्मान योजना का विशेष जिक्र है, जिसके तहत महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए आर्थिक सहायता और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का दावा किया गया था. सरकार ने इस योजना के तहत महिलाओं के खातों में 1000 रुपये भेजने का वादा किया, ताकि गर्भवती महिलाओं को वित्तीय मदद मिल सके.

हालांकि, इस योजना की सच्चाई गुलशन खातून की घटना से पूरी तरह उजागर हो जाती है. महिलाओं को अस्पतालों में उचित स्वास्थ्य सेवाएं तक नहीं मिल पा रही हैं, और उन्हें सड़क पर बच्चों को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी इस मामले को लेकर सरकार पर हमला बोला है. विपक्ष का कहना है कि हेमंत सोरेन सरकार की स्वास्थ्य नीतियां केवल कागजों तक सीमित हैं और वास्तविकता में आम जनता को इनसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है.

सरकार की प्रतिक्रिया:

घटना के बाद, बढ़ती आलोचना को देखते हुए रांची के उपायुक्त (DC) ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की है. जांच टीम यह पता लगाएगी कि इस मामले में लापरवाही किसकी थी और क्या कारण थे कि महिला को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल सकी.

हालांकि, सरकार ने इस मामले में तुरंत संज्ञान लिया है, लेकिन यह घटना एक बड़ी स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों को उजागर करती है. राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की सख्त जरूरत है, ताकि इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हों.

निष्कर्ष:

झारखंड की स्वास्थ्य सेवाएं एक गंभीर संकट से गुजर रही हैं. राज्य में सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. गुलशन खातून की घटना ने न केवल राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की असफलता को उजागर किया है, बल्कि सरकार के वादों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई को भी दिखाया है.

अगर सरकार जल्द ही आवश्यक कदम नहीं उठाती है और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए ठोस योजनाओं को लागू नहीं करती है, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता इसका कड़ा जवाब दे सकती है.

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