New Delhi, 27 जुलाई . Prime Minister Narendra Modi ने Sunday को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 124वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, स्वदेशी आंदोलन, और हथकरघा क्षेत्र की सफलताओं पर विस्तार से चर्चा की.
पीएम मोदी ने कहा, ”7 अगस्त 1905 को एक और क्रांति की शुरुआत हुई थी. इस आंदोलन को स्वदेशी आंदोलन कहा गया. इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोग विदेशी सामान का इस्तेमाल बंद करें और अपने देश में बने हुए सामान, खासकर हाथ से बने कपड़ों (हैंडलूम) का उपयोग करें. इससे देश की अर्थव्यवस्था को ताकत मिली और लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना जागी. इसी आंदोलन की याद में, India हर साल 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ के रूप में मनाता है.”
उन्होंने आगे कहा, ”इस साल, जब हम 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाएंगे, तो यह दिन इस खास मौके को भी दर्शाएगा कि अब इस दिन को मनाते हुए 10 साल पूरे हो चुके हैं. इस दिन हम अपने देश के हथकरघा कामगारों को सम्मान देते हैं और देशी उत्पादों को बढ़ावा देने का संकल्प लेते हैं.”
Prime Minister मोदी ने कहा, ”जैसे आजादी की लड़ाई के समय खादी ने आंदोलन को एक नई ताकत दी थी, वैसे ही आज जब हमारा देश ‘विकसित भारत’ बनने की ओर बढ़ रहा है, तो कपड़ा उद्योग देश की एक बड़ी ताकत बनता जा रहा है. पिछले 10 सालों में, देश के अलग-अलग हिस्सों में इस क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों ने मेहनत से कई कामयाबी की कहानियां लिखी हैं. उन्होंने न सिर्फ अपने लिए रोजगार बनाया, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया.”
Prime Minister ने Maharashtra के पैठण गांव की कविता धवले की सफलता की कहानी साझा करते हुए कहा, ”Maharashtra के पैठण गांव की कविता धवले पहले एक छोटे से कमरे में काम करती थीं. उनके पास ना तो ठीक जगह थी और ना ही जरूरी सुविधाएं. लेकिन Government से मदद मिलने के बाद, उनकी मेहनत और हुनर ने उड़ान भर ली. अब वो पहले से तीन गुना ज्यादा कमाई कर रही हैं और अपनी खुद की बनाई हुई पैठणी साड़ियां बेच रही हैं. उनकी ज़िंदगी में बड़ा बदलाव आया है.”
इसके अलावा उन्होंने Odisha के मयूरभंज की महिलाओं और बिहार के नालंदा के नवीन कुमार की उपलब्धियों का भी जिक्र किया.
पीएम मोदी ने कहा, ”ऐसी ही एक और कामयाबी की कहानी Odisha के मयूरभंज जिले से भी है, जहां किसी और ने भी इसी तरह मेहनत और Governmentी मदद से बड़ी सफलता पाई है. इन कहानियों से पता चलता है कि अगर हुनर को सही मदद मिले, तो बड़ा बदलाव मुमकिन है. Odisha के मयूरभंज में 650 से ज्यादा आदिवासी महिलाएं अब फिर से संताली साड़ी बनाना शुरू कर चुकी हैं, जो पहले धीरे-धीरे खत्म हो रही थी. अब ये महिलाएं हर महीने हजारों रुपये कमा रही हैं. ये महिलाएं सिर्फ कपड़ा नहीं बना रहीं, बल्कि अपनी एक अलग पहचान भी बना रही हैं. बिहार के नालंदा जिले के नवीन कुमार की कहानी भी बहुत प्रेरणादायक है. उनके परिवार की कई पीढ़ियां इसी काम से जुड़ी रही हैं. उन्होंने अपने पारंपरिक काम को आगे बढ़ाया और इसमें सफलता पाई.”
–
पीके/केआर