आपातकाल में जेल गए लोगों को पेंशन, लोकतंत्र सेनानी संगठन ने जताया मोहन माझी सरकार का आभार

भुवनेश्वर, 14 जनवरी . ‘लोकतंत्र सेनानी संगठन’ 1975 के आपातकाल के दौरान हिरासत में लिए गए लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. अब इस संगठन ने मोहन माझी के नेतृत्व वाली सरकार के उस फैसले की सराहना की है, जिसमें आपातकाल के दौरान प्रभावित लोगों को पेंशन और अन्य लाभ प्रदान करने की घोषणा की गई थी.

संगठन के सदस्य, दिल्ली से लौटने के बाद भुवनेश्वर हवाई अड्डे पर मुख्यमंत्री मोहन माझी का स्वागत करने पहुंचे. उन्होंने कहा, “50 साल बाद, हमारे बलिदानों को आखिरकार मोहन माझी की भाजपा सरकार द्वारा सम्मानित किया जा रहा है.”

संगठन के सदस्यों ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा की गई दमनकारी नीतियों को याद किया. उन्होंने कहा, “लोकतंत्र पर हमला किया गया था. हमें जेल में डाला गया, प्रताड़ित किया गया और अत्याचार सहने पड़े. हम छात्रों के रूप में तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने पर जेल गए थे.”

संगठन ने पिछली बीजू जनता दल सरकार की भी आलोचना की, जो इन मुद्दों को हल करने में विफल रही, और कहा कि भाजपा सरकार के कारण अब उनके योगदान को मान्यता मिल रही है.

संगठन से जुड़े भूपराज त्रिपाठी ने से बातचीत में कहा, “हम लोग आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करके जेल गए थे. वह समय इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का था, जब पूरा देश मुश्किलों का सामना कर रहा था. इस दौरान हम महाराष्ट्र में थे, और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में छात्र संघर्ष में शामिल थे. ओडिशा में भी यह आंदोलन था, जहां हम और हमारे कुछ पुराने नेता भी भाग ले रहे थे.”

उन्होंने कहा कि हमने सत्याग्रह किया और इसके परिणामस्वरूप करीब 1,10,000 लोग इसमें शामिल हुए थे. ओडिशा में लगभग 1,200 लोग जेल गए थे. अब, 50 साल बाद, इस आंदोलन से जुड़े करीब 300 लोग बचें हैं. जो लोग इस संघर्ष में शामिल थे, उन्हें सरकार द्वारा सम्मानित किया जा रहा है और पेंशन भी दी जा रही है. हालांकि, पहले की सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया था, लेकिन अब नई सरकार ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए हमें संवर्धन और पेंशन देने का निर्णय लिया है.

संगठन से जुड़े सनाबंदी ने से बातचीत में आपातकाल के दिनों को याद किया. उन्होंने कहा कि जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था, तो उस समय छात्र नेता भी टारगेट पर थे. हम सभी को गिरफ्तार किया गया और बहुत तकलीफें दी गईं. वह समय ऐसा था कि हमें सोचने का भी मौका नहीं मिलता था. कोई भी सरकार के खिलाफ बोल नहीं सकता था और किसी भी तरह का विरोध नहीं किया जा सकता था. सरकार के खिलाफ किसी भी आवाज को दबा दिया जाता था और न्यायपालिका भी चुप थी. कोई मदद नहीं मिल रही थी. हम जेल में बहुत सतर्क रहते थे, क्योंकि हमें कभी भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता था.

वहीं, इस संगठन से जुड़े एक अन्य शख्स ने से बातचीत में बताया कि बहुत सारे लोगों को उस समय की सरकार ने मीसा के तहत गिरफ्तार किया था. उसके बाद आंदोलन शुरू हुआ था और हम सभी ने मिलकर आपातकाल के दौरान सत्याग्रह किया और जेल गए थे. हम जेल में एक साल तक रहे और उस दौरान बहुत सी कठिनाइयां झेलीं. अब, पचास साल बाद, वर्तमान सरकार ने जो निर्णय लिया है, हम उसे मानते हैं और आभार व्यक्त करते हैं. उस समय हमारे दिल में बहुत ही गहरी भावनाएं थीं, क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हम संघर्ष कर रहे थे. उस आंदोलन को हम स्वतंत्रता संग्राम के जैसा मान सकते हैं.

एसएचके/एएस