पाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए : प्रोफेसर चंद्रकृति

नई दिल्ली, 17 अक्टूबर . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में अभिधम्म दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया. विज्ञान भवन में बौद्ध भिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने भगवान बुद्ध से अपने जुड़ाव के बारे में बात की. उन्होंने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने और देश की संस्कृति और सभ्यता की नई प्रस्तुति के बारे में भी बात की.

कार्यक्रम में शामिल बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों ने पीएम मोदी के कार्यक्रम में पहुंचने पर खुशी जाहिर की और साथ ही पाली को शास्त्रीय भाषा बनाने और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को डिजिटल बनाने पर पीएम मोदी से सहमति जताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश हित में अच्छा काम कर रहे हैं.

सम्राट अशोक सुभारती बौद्ध अध्ययन विद्यालय, मेरठ की प्रोफेसर डॉ. चंद्रकृति ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि 3 अक्टूबर को भारत सरकार ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है. यह खास तौर पर बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए बड़ा संदेश था. पाली तथागत गौतम बुद्ध की वाणी की भाषा रही है. पीएम मोदी के कार्यक्रम में कई बौद्ध धर्मावलंबी शामिल हुए हैं. पीएम मोदी ने बौद्ध धर्मावलंबियों के बारे में बहुत कुछ बताया है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हम पाली भाषा को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी शुरू करने जा रहे हैं.

डॉ. चंद्रकृति ने कहा कि आज आश्विन पूर्णिमा का दिन है जिसे हम अभिधम्म दिवस के रूप में भी मनाते हैं. पाली भाषा को भारत सरकार ने शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है. बौद्ध धर्मावलंबियों की मांग है कि पाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए. दूसरी मांग यह है कि 2011 में पाली भाषा को यूपीएससी के पैटर्न से हटा दिया गया था. पाली भाषा को यूपीएससी के पैटर्न में वापस लाया जाना चाहिए. मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में पाली भाषा को साहित्य में भी अपनाया जाएगा.

अन्य बौद्ध अनुयायियों ने कहा कि पीएम मोदी ने पाली भाषा के बारे में जो बताया है वह काफी सार्थक और सही है. पाली एक आम भाषा थी. यह आज भी एक आम भाषा है. इस भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस भाषा में हम भावनाओं में ज्ञान की बात करते हैं. इस तरह का ज्ञान दुनिया के किसी भी साहित्य में नहीं मिलता है. पाली साहित्य में भावनाओं में ज्ञान की अनुभूति होती है. इस भाषा के अनुभव से ज्ञान उत्पन्न होता है. जब हम इस भाषा में दुनिया को देखते हैं, तो हमेशा करुणा, मुदिता, मिक्खा की भावना उत्पन्न होती है. इस साहित्य में कुछ भी काल्पनिक नहीं है. साहित्य में जो भी कहा गया है वह अनुभव आधारित है. अनुभव के आधार पर बुद्ध के शिष्य और शिष्यों में जो परिवर्तन आया है, उसकी सार्थकता और महत्व आज के वैश्वीकरण और उपभोक्ताकरण की दुनिया में भी है.

उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से हम पूरे विश्व में मैत्री और करुणा की भावना स्थापित कर सकते हैं. जब मनुष्य बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करके अपने भीतर से इस सभी मानसिक विकार को नष्ट कर देगा, तो ये सभी समस्याएं अपने-आप नष्ट हो जाएंगी. इसके बाद दुनिया में सुख, समृद्धि और शांति का माहौल बनेगा.

दूसरे अनुयायियों ने कहा कि हमारे देश के लोग बुद्ध के बारे में अनभिज्ञ हैं. हालांकि, विदेशों में उन्हें व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है. उन्होंने कहा कि खासकर यह लोगों की संस्कृति में एकीकृत नहीं है. जब देश का शीर्ष नेतृत्व इसे संस्कृति में एकीकृत करने की बात करता है, तो यह वास्तव में देश के निचले स्तर तक प्रवाहित होता है. पीएम मोदी का यह कार्यक्रम बहुत अच्छा है. पाली के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अपनाया जाएगा. यह भी सही है कि पाली भाषा पर बहुत कम काम हुआ है. अकादमिक काम हुआ है. संस्कृति के स्तर पर जो किया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ है. हमारे देश के आम लोगों की भाषा पाली थी. इस भाषा ने बहुत लंबे समय तक हमारे देश, हमारे लोगों और तत्कालीन सरकार का मार्गदर्शन किया है. लेकिन पाली भाषा अब इस देश की भाषा नहीं है. इसकी जगह कई भाषाएं पढ़ाई जा रही हैं. लेकिन सभी भाषाओं की उत्पत्ति पाली भाषा से हुई है.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान बुद्ध को याद किया. उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के अभिधम्म, उनकी वाणी, उनकी शिक्षाएं जिस पाली भाषा में विरासत के तौर पर विश्व को मिली हैं, उसी पाली भाषा को इसी महीने भारत सरकार ने शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है. पाली को शास्त्रीय भाषा का यह दर्जा, यह सम्मान भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान है.

आरके/एकेजे