मुंबई, 30 जून . महाराष्ट्र में मानसून सत्र का पहला दिन हंगामेदार रहा है. विधानमंडल में मानसून सत्र के पहले दिन की शुरुआत प्रमुख राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति में हुई. बारी-बारी से लगभग विधायकों ने विधानमंडल पहुंचकर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. उसके बाद हंगामे के बीच मानसून सत्र का आगाज हुआ.
सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने पहले दिन अपना-अपना शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की. महाविकास आघाड़ी के नेताओं ने विधान भवन की सीढ़ियों पर धरना दिया. विपक्ष ने झांझ मंजीरा लेकर अनोखे अंदाज में विरोध प्रदर्शन किया. पोस्टर लेकर उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और आरोप लगाया कि वह मराठी भाषा का अपमान कर रही है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उप-मुख्यमंत्रियों एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ विधानसभा परिसर में छत्रपति शिवाजी को श्रद्धांजलि दी. इसके साथ ही सत्तापक्ष की तरफ से एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की गई.
महाराष्ट्र सीएमओ के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा गया, “मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ‘मानसून सत्र 2025’ की शुरुआत से पहले मुंबई के विधानभवन में छत्रपति शिवाजी महाराज को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की और उनका आशीर्वाद लिया. डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के साथ मंत्री भी मौजूद थे.”
‘हिंदी’ के खिलाफ विपक्ष के विरोध पर भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंग्रेजी भाषा को लेकर कोई विवाद नहीं है, लेकिन हिंदी को लेकर विवाद है. हम हिंदी को अपने देश में और राज्यों के बीच संचार का माध्यम मानते हैं. महात्मा गांधी ने एक बार नहीं बल्कि करीब पचास बार आग्रह किया था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा माना जाए, तो फिर हम हिंदी का विरोध क्यों करें? मराठी भाषा को दबाया नहीं जा रहा है.”
इसी तरह शिवसेना नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने विपक्ष के आरोपों पर जवाब दिया. उन्होंने कहा, “हिंदी भाषा महाराष्ट्र में पहले से ही अनिवार्य थी. अब छठी कक्षा से इसे वैकल्पिक बनाया गया है. छात्रों को 15 भारतीय भाषाओं या किसी एक विदेशी भाषा में से चयन करने का विकल्प दिया गया है. जो पहले हिंदी को अनिवार्य किया गया था, अब उसे वैकल्पिक कर दिया गया है.”
शिवसेना-यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे ने ‘हिंदी’ विवाद पर कहा, “आंदोलन हिंदी भाषा की सख्ती को लेकर था. इस आंदोलन में सिर्फ विपक्षी नहीं, बल्कि पूरा महाराष्ट्र सड़कों पर उतरा था, इसलिए मुख्यमंत्री को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. अभी तक हम लिखित आदेश का इंतजार कर रहे हैं.”
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डीसीएच/जीकेटी