नई दिल्ली, 4 जुलाई . ‘अगर इतिहास की तारीखें बोल सकतीं, तो 5 जुलाई पाकिस्तान से कहती, ‘तुम्हारी तकदीर बदल गई, मगर बेहतर नहीं हुई.’ एक राष्ट्र, जिसने अपने वजूद की बुनियाद ‘इस्लाम’ पर रखी थी, लेकिन साल 1977 में 5 जुलाई को उसी बुनियाद को अपना हथियार बनाया और अपनी ही लोकतांत्रिक आत्मा को गिरवी रख बैठा.
5 जुलाई महज तारीख नहीं है. यह पाकिस्तान के इतिहास का वो मोड़ था, जहां से तानाशाही ने जनमत को कुचला और धार्मिक कट्टरता ने संविधान की जगह ली. इसी दिन जनरल मोहम्मद जिया-उल-हक के नेतृत्व में ‘ऑपरेशन फेयर प्ले’ के तहत पाकिस्तान की सेना ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता से बेदखल कर दिया. जिस नेता ने जिया को सेना प्रमुख बनाया था, उसी की सरकार को उसी जनरल ने सत्ता से बेदखल कर जेल भेज दिया. यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं था. यह पाकिस्तान की दिशा, सोच और चरित्र का परिवर्तन था.
इस सैन्य क्रांति ने पाकिस्तान को लोकतंत्र से कट्टर इस्लामीकरण, सैन्य वर्चस्व और अस्थिरता की ओर धकेल दिया. उस कट्टरता की गूंज आज भी उस मुल्क की हर गली, हर संविधान और हर संघर्ष में सुनी जा सकती है.
विडंबना यह थी कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही जिया-उल-हक को प्रमोट कर सेना का प्रमुख बनाया था. लेकिन, इतिहास में बार-बार देखा गया है कि पाकिस्तान की फौज केवल वर्दी नहीं पहनती, सत्ता का सपना भी देखती है. यही हुआ 5 जुलाई को, जब भुट्टो के सभी लोकतांत्रिक स्तंभ जिया की बूटों की आवाज के नीचे दब गए.
तख्तापलट का नाम दिया गया ऑपरेशन फेयर प्ले, पर इसमें न फेयर था, न ही कोई प्ले. अगले ही दिन मार्शल लॉ लगा दिया गया. भुट्टो को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. उनके खिलाफ चुनावी धांधली, भ्रष्टाचार और दमन के आरोप लगाए गए. बाद में, उन्हें फांसी दे दी गई.
जनरल जिया-उल-हक ने सत्ता में आते ही पाकिस्तान की पहचान को बदलना शुरू कर दिया. उन्होंने यह घोषित किया कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना है और इसका भविष्य भी इस्लाम में ही निहित है. इसके साथ ही शुरू हुआ पाकिस्तान का पूर्णतः इस्लामीकरण. शरिया कानून लागू कर दिया गया. विशेष शरिया अदालतें बनाई गईं. अपराधियों को इस्लामी सजा मिलने लगी, जिसमें कोड़े मारना, अंग काटना और सार्वजनिक फांसी शामिल थी. इसके अलावा, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कटौती होने लगी. पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तकों में कट्टरपंथी विचारधारा को शामिल किया गया.
जिया का मानना था कि सेक्युलरिज्म पाकिस्तान के लिए जहर है, और इसे खत्म करना देशभक्ति का काम है. सरकारी संस्थानों, न्यायपालिका, शिक्षा और यहां तक कि मीडिया को भी इस्लामी नजरिए से ढालना शुरू कर दिया गया. धार्मिक कठमुल्लों की ताकत तेजी से बढ़ी और पाकिस्तान धीरे-धीरे एक कठोर धार्मिक राज्य में तब्दील हो गया.
इस दौर में ही अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध शुरू हुआ. जिया-उल-हक ने अमेरिका से हाथ मिला लिया. सीआईए के समर्थन से पाकिस्तान अफगान मुजाहिदीन का ट्रेनिंग बेस बन गया. अमेरिका ने हथियार, पैसा और तकनीक दी, और बदले में पाकिस्तान ने कट्टरपंथियों को जन्म दिया. यही वो समय था जब तालिबान और जिहादी नेटवर्क ने पाकिस्तान की धरती पर जड़ें जमाईं, जिसका दंश वह आज भी भुगत रहा है.
17 अगस्त 1988 को जिया-उल-हक का विमान बहावलपुर से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद क्रैश हो गया. विमान में 31 लोग सवार थे और सभी जलकर खाक हो गए. यह दुर्घटना आज भी रहस्य बनी हुई है. कुछ इसे हादसा मानते हैं, तो कुछ साजिश. पर एक बात तय है, जिया के जाने के बाद भी तानाशाह के बोए गए बीज पाकिस्तान के समाज में बड़े पेड़ का आकार ले चुके हैं.
जुल्फिकार अली भुट्टो की हत्या और जिया-उल-हक की नीतियों ने पाकिस्तान को एक ऐसे रास्ते पर धकेल दिया, जहां लोकतंत्र की जगह फौजी बूट और संविधान की जगह फतवे ने ले ली. आज पाकिस्तान की राजनीति, न्याय व्यवस्था और समाज का हर कोना धार्मिक कट्टरवाद, सैन्य हस्तक्षेप और अस्थिरता से ग्रस्त है.
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पीएसके/केआर