नई दिल्ली, 10 दिसंबर . इंडी गठबंधन में दरार की खबरों के बीच, इस गठबंधन के दो प्रमुख दल दो राज्यों में एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं. एक तरफ महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) ने महाविकास अघाड़ी के तौर पर एक साथ चुनाव लड़ा तो वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) दो मुद्दों पर एक-दूसरे के आमने-सामने आ खड़ी हुई है. एक तो वीर सावरकर के अपमान का मुद्दा शिवसेना (यूबीटी) उठा रही है. क्योंकि कर्नाटक में विधानसभा भवन से वीर सावरकर की तस्वीर उतारने की बात सामने आई है. वहीं, बेलगाम (बेलगावी) को लेकर भी कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के नेता एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं.
बेलगाम का मामला हालांकि काफी पुराना है. लेकिन, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद एक बार फिर से शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से यह मुद्दा उछाला जा रहा है.
दरअसल, यह मामला तब गर्मा गया जब महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाने को कहा है. इसके साथ ही उस पत्र में आदित्य ठाकरे ने यह भी लिखा है कि सरकार अगर यह प्रस्ताव लेकर आती है तो शिवसेना (यूबीटी) इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन करेगी.
आदित्य ठाकरे की मानें तो बेलगाम और कारवार सीमा पर मराठी भाषी लोगों के साथ इंसाफ नहीं हो रहा है. ऐसे में महाराष्ट्र सरकार को बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के लिए केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इसके साथ कहा है कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले मराठी भाषी क्षेत्र के लोगों के साथ सरकार खड़ी है. उन्होंने इस बात की भी निंदा की कि बेलगाम सहित कर्नाटक के सीमावर्ती इलाकों में रह रहे मराठी भाषी लोगों के साथ कर्नाटक सरकार अन्याय कर रही है. कर्नाटक सरकार की इस बात की भी उन्होंने निंदा की जिसमें वहां की सरकार ने कहा कि मराठी लोगों को बैठकें नहीं करनी चाहिए. यह एक तरह से उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.
आदित्य ठाकरे की इस मांग को लेकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री की तरफ से भी प्रतिक्रिया आई और उन्होंने इस मांग को बचकाना बताया. सीएम सिद्दारमैया ने साफ कहा कि हमारे लिए महाजन रिपोर्ट आखिरी है और इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के बाद बात खत्म हो गई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कोई बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश बना सकता है. उन्होंने आगे यहां तक कह दिया कि अगर महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) इस पर विरोध करती है तो हम किसी भी कीमत पर चुप नहीं रहेंगे.
इसके बाद बेलगाम पहुंचे कर्नाटक के सीएम सिद्दारमैया ने एक बार फिर मीडिया के द्वारा इसको लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि ”बेलगाम पर महाजन आयोग की रिपोर्ट अंतिम है और यह मूर्खता है कि जिले को बार-बार महाराष्ट्र में शामिल किए जाने की मांग की जा रही है. कर्नाटक सरकार इस संबंध में दिए जा रहे बचकाने बयानों को बर्दाश्त नहीं करेगी.”
उन्होंने आगे कहा कि बेलगाम को निशाना बनाकर बचकानी बयानबाजी कर्नाटक बर्दाश्त नहीं करेगा.
दरअसल, इस पूरे मामले की जड़ कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र के शुरू होने से जुड़ी हुई है. जैसे ही यह सत्र शुरू हुआ महाराष्ट्र एकीकरण समिति के सदस्यों ने इसका विरोध किया. समिति के लोगों ने बेलगाम में एक सभा का आयोजन किया. लेकिन, कर्नाटक सरकार ने कथित तौर पर इस आयोजन पर रोक लगा दी, साथ ही महाराष्ट्र के नेताओं के कर्नाटक में प्रवेश पर रोक लगा दी.
इसको लेकर कर्नाटक बीजेपी भी वहां की सरकार के साथ खड़ी नजर आ रही है. वहां के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेंद्र येदियुरप्पा ने तो आदित्य ठाकरे की इस मांग को लेकर कह दिया कि महाराष्ट्र में करारी हार के बाद शिवसेना (यूबीटी) इस मुद्दे को उछालने की कोशिश कर रही है. यह सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि बेलगावी हमेशा से कर्नाटक का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा.
वहीं, शिवसेना (यूबीटी) के नेता और प्रवक्ता आनंद दुबे ने इसको लेकर कहा कि बेलगाम महाराष्ट्र के एकदम करीब है, अगर बेलगाम को महाराष्ट्र में नहीं ले पा रहे हैं, तो कम से कम उसको स्वतंत्र करना चाहिए, केंद्रीय शासित प्रदेश बनाना चाहिए. आदित्य ठाकरे ने यह मांग की है तो इसमें क्या गलत है.
आनंद दुबे ने कहा, “महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री और कर्नाटक के मुख्यमंत्री को बैठकर इस पर चर्चा करनी चाहिए और इसका कैसे भी हल निकालना चाहिए. इसमें बेलगाम की जनता पीस रही है, उनका क्या दोष है.”
उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ेगा, बिना उनके हस्तक्षेप के इस मामले में कुछ नहीं होने वाला है.
उन्होंने आगे कहा कि शिवसेना (यूबीटी) ने इसको लेकर खुली चुनौती दी है. अगर समय रहते इसको नहीं सुलझाया गया तो हम आंदोलन करेंगे.
आनंद दुबे ने आगे कहा कि हम इस मामले में कांग्रेस को आईना दिखा रहें है, अब समय रहते सुधार जाओ, नहीं तो देर हो जाएगी.
उन्होंने आगे वीर सावरकर को लेकर कर्नाटक में हो रहे कोहराम पर कहा, ”हम वीर सावरकर के हिंदुत्व का मुद्दा छोड़ नहीं सकते, ये हमारा प्रण है. कर्नाटक सरकार से हम अपील करते हैं कि वीर सावरकर की फोटो फिर से उसी सदन में लगाई जाए, वरना जहां-जहां आप की सरकार नहीं है, महापुरुषों की तस्वीरें हटाने लगेंगे तो आप को कैसा लगेगा. अगर किसी के घर कांच के होते हैं तो दूसरे के घर पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए, ये कांग्रेस जान ले.”
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व से शिवसेना (यूबीटी) के नेता बात करेंगे और वीर सावरकर के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा, सावरकर का अपमान शिवसेना बर्दाश्त नहीं कर सकती है.
वहीं, महाराष्ट्र भाजपा के विधायक गिरीश महाजन ने भी बेलगाम के मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा कि हम और हमारी सरकार मराठी लोगों के साथ है. वैसे बेलगाम के मुद्दे पर विपक्ष की मांग जो हो रही है तो आपको बता दें कि विपक्ष का काम ही मांग करना है. लेकिन, हमारी सरकार मराठी लोगों का दर्द समझती है और उनके साथ हमेशा खड़ी है. हमारे मुख्यमंत्री ने भी इसको लेकर स्पष्ट कर दिया है.
दरअसल, बेलगाम को लेकर विवाद कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच 1957 से चला आ रहा है. जब राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया गया था. उस समय बेलगाम पर महाराष्ट्र ने दावा किया था और इसके पीछे का कारण यह था कि यह पूर्ववर्ती बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. यहां बड़ी संख्या में मराठी भाषी लोग रहते हैं और 800 से ज्यादा मराठी भाषी सीमावर्ती गांव हैं. जो इस समय कर्नाटक राज्य का हिस्सा हैं. ऐसे में महाराष्ट्र दावा करता है कि उन गांवों में मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है, इसलिए वो उसे वापस सौंप दिए जाएं. वहीं, कर्नाटक राज्य की सीमाओं के पुनर्गठन को कानून के तहत किया हुआ बताता रहा है.
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जीकेटी/