नई दिल्ली, 26 जून . अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के मॉरिश चौक पर सैकड़ों की संख्या में आपातकाल का पुतला दहन कर विरोध-प्रदर्शन किया. इस दौरान लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय ‘आपातकाल’ की क्रूर घटनाओं को याद करते हुए संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लिया गया.
ज्ञात हो कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 1975 में लगाए गए आपातकाल को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक एवं संविधान की हत्या करने वाला निर्णय करार देते हुए देशभर में अनेक प्रदर्शन किए थे. इस संघर्ष के फलस्वरूप, इंदिरा गांधी सरकार ने अभाविप के हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया था. तभी से अभाविप प्रत्येक वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाते हुए संविधान एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के अपने संकल्प को दोहराता आ रहा है. इसी परंपरा के तहत परिषद ने आज दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में विरोध मार्च निकाला और मॉरिस चौक पर आपातकाल का पुतला दहन किया.
अभाविप के प्रदेश मंत्री सार्थक शर्मा ने कहा कि 25 जून हर भारतीय के लिए काला दिन है. यह हमें उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की क्रूर और तानाशाही नीतियों का स्मरण कराता है. अभाविप ने उस समय भी इस ‘आपातकाल’ को लोकतंत्र के काले अध्याय के तौर पर इसके विरुद्ध देशव्यापी संघर्ष किया था और आज भी इसकी क्रूर स्मृतियों को जीवंत रखने के लिए हर वर्ष 25 जून को आपातकाल दिवस मनाता है. इस क्रम में आज हमने दिल्ली विश्वविद्यालय में पुतला दहन कर लोकतंत्र की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपने संकल्प को मजबूत किया.
संगठन की राष्ट्रीय मंत्री शिवांगी खरवाल ने कहा, “आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय था, जिसने देश को एक व्यक्ति की सत्ता-लालसा के अधीन कर दिया. प्रेस की स्वतंत्रता से लेकर आम नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक, सब कुछ कुचल दिया गया था. अभाविप ने तब भी लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष किया और आज भी यह संगठन युवाओं को संविधान की मूल भावना से जोड़ने का काम कर रहा है. यह विरोध केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य के लिए चेतावनी है कि जब-जब लोकतंत्र को चुनौती मिलेगी, अभाविप सबसे आगे खड़ा मिलेगा.”
अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने कहा, “1975 का आपातकाल केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, वह इस देश की आत्मा पर प्रहार था. न्यायपालिका को पंगु बनाया गया, प्रेस को सेंसर किया गया और इसका विरोध करने वालों को जेलों में डाल दिया गया. उस दौर में अभाविप ने बिना भय के इसके खिलाफ संघर्ष किया था. आज जब आपातकाल की 50वीं बरसी आ चुकी है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम नई पीढ़ी को उन संघर्षों से अवगत कराएं ताकि भविष्य में कोई भी सत्ता संविधान से ऊपर न हो सके. अभाविप का यह संकल्प है कि वह न केवल अतीत को स्मरण में रखेगा, बल्कि हर स्तर पर लोकतंत्र की रक्षा के लिए सक्रिय रहेगा.”
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एकेएस/एकेजे