नई दिल्ली, 28 अप्रैल . अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से टैरिफ में बढ़ोतरी किए जाने के बाद भी ज्यादातर ऑटो निर्यातकों के पास डेट और लिक्विडिटी पर्याप्त मात्रा में होगी. हालांकि, मार्जिन पर दबाव और वर्किंग कैपिटल की आवश्यकता बढ़ सकती है. सोमवार को जारी हुई आईसीआरए की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई.
रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 24 में भारतीय ऑटो कंपोनेंट इंडस्ट्री की 70 प्रतिशत आय घरेलू इंडस्ट्री से आई थी और इंडस्ट्री की कुल आय में अमेरिकी मार्केट की हिस्सेदारी केवल 8 प्रतिशत थी.
रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 2020 से लेकर वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका को होने वाले ऑटो कंपोनेंट निर्यात में 15 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से वृद्धि हुई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल ओईएम (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर) द्वारा वेंडर डाइवर्सिफिकेशन के कारण नए प्लेटफार्मों को बढ़ती आपूर्ति और हाई वैल्यू एडिशन जैसे कारकों ने भारतीय ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर को फायदा पहुंचाया है, जबकि अमेरिका में पूर्व-कोविड स्तरों की तुलना में नए वाहन के पंजीकरण की वृद्धि धीमी रही है.
आईसीआरए लिमिटेड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट शमशेर दीवान ने कहा, “ऑटो कंपोनेंट सप्लायर्स ने संकेत दिया है कि बढ़ती लागत का अधिकांश हिस्सा आगे पास किया जाएगा. हालांकि, किसी भी क्रेता-आपूर्तिकर्ता वार्ता की तरह, पास-थ्रू की सीमा आपूर्तिकर्ता की गंभीरता, व्यापार में हिस्सेदारी, प्रतिस्पर्धा और आपूर्ति किए गए कंपोनेंट की तकनीक पर निर्भर करेगी.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर बढ़ी हुई टैरिफ लागत का औसतन 30-50 प्रतिशत भारतीय ऑटो कंपोनेंट निर्यातकों द्वारा वहन किया जाता है, तो हमारा अनुमान है कि इससे लगभग 2,700-4,500 करोड़ रुपये की आय प्रभावित होगी, जो ऑटो कंपोनेंट उद्योग के परिचालन लाभ का 3-6 प्रतिशत और ऑटो कंपोनेंट निर्यातकों के परिचालन लाभ का 10-15 प्रतिशत है.”
अमेरिकी सरकार की ओर से 26 मार्च, 2025 को जारी किए गए आदेश में आयातित प्रमुख ऑटोमोबाइल पार्ट्स (इंजन, ट्रांसमिशन, पावरट्रेन और इलेक्ट्रिकल कंपोनेंट) पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया गया था. भारत के ऑटो कंपोनेंट निर्यात बास्केट का लगभग 65 प्रतिशत 25 प्रतिशत आयात टैरिफ कैटेगरी में आने का अनुमान है.
आईसीआरए का मानना है कि निकट भविष्य में ग्राहकों के साथ बिजनेस शेयर में कमी आने की संभावना नहीं है, क्योंकि स्विचिंग लागत अधिक है और प्रोडक्ट डेवलपमेंट, टेस्टिंग और एप्रूवल साइकिल काफी लंबे हैं.
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एबीएस/