कोई एम्बुलेंस नहीं, महा गांव में माता-पिता मृत बेटों के शव को कंधे पर घर ले जाने को मजबूर

गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), 5 सितंबर . अहेरी तालुका के एक युवा जोड़े को अपने दो मृत बेटों के शवों को एक अस्पताल से ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिनकी कथित तौर पर समय पर उचित इलाज नहीं मिलने के कारण बुखार से मौत हो गई थी. एक शीर्ष नेता ने गुरुवार को दावा किया कि इनका घर 15 किमी दूर गढ़चिरौली में है.

विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने अज्ञात जोड़े का एक रोंगटे खड़े कर देने वाला वीडियो साझा किया, जिसमें वह जोड़ा 10 साल से कम उम्र के दो नाबालिग लड़कों के शवों को अपने कंधों पर उठाकर कीचड़ भरे जंगल के रास्ते से गुजरते दिख रहे हैं.

वडेट्टीवार ने त्रासदी का एक वीडियो पोस्ट करते हुए कहा, “दोनों बच्चे बुखार से पीड़ित थे, लेकिन उन्हें समय पर इलाज नहीं मिला. कुछ ही घंटों में उनकी हालत बिगड़ गई और अगले एक घंटे में दोनों लड़कों ने दम तोड़ दिया.”

उन्होंने आगे कहा “दोनों नाबालिगों के शवों को उनके गांव, पट्टीगांव तक ले जाने के लिए कोई एम्बुलेंस नहीं थी और माता-पिता को बारिश में कीचड़ भरे रास्ते से 15 किमी पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ा. गढ़चिरौली की स्वास्थ्य व्यवस्था की एक गंभीर हकीकत आज फिर सामने आ गई है.”

कांग्रेस नेता ने बताया कि कैसे महायुति सहयोगी, भारतीय जनता पार्टी के देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली के संरक्षक मंत्री हैं, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के धर्मराव बाबा अत्राम मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सरकार में एफडीए मंत्री हैं.

वडेट्टीवार ने कहा, “दोनों यह दावा करते हैं कि पूरे महाराष्ट्र में हर दिन कार्यक्रम आयोजित करके राज्य कैसे विकसित हो सकता है, इस पर बात हो रही है. उन्हें जमीन पर उतर कर देखना चाहिए कि गढ़चिरौली में लोग कैसे रहते हैं और वहां मरने वालों की संख्या क्या है.”

इस सप्ताह कांग्रेस एलओपी द्वारा उजागर किए गए विदर्भ क्षेत्र से यह अपनी तरह का दूसरा मामला है.

1 सितंबर को, एक गर्भवती आदिवासी महिला ने अपने घर पर एक मृत बच्चे को जन्म दिया और फिर खुद ही दम तोड़ दिया, क्योंकि एक स्थानीय अस्पताल उसे समय पर इलाज के लिए अपने यहां लाने के लिए एम्बुलेंस भेजने में विफल रहा.

अमरावती के मेलघाट आदिवासी क्षेत्र के दहेंद्री गांव की कविता ए सकोल के रूप में पहचानी गई महिला को प्रसव पीड़ा हुई और उसके परिवार ने स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों से एम्बुलेंस के लिए बात की, लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें कम से कम चार घंटे लग सकते हैं.

कोई विकल्प न होने पर कविता का घर पर ही प्रसव हुआ और एक मृत बच्चे का जन्म हुआ. उसकी हालत भी बिगड़ गई, जिससे उसके परिजन चिंतित हो गए. परिवार ने एक स्थानीय निजी वाहन की व्यवस्था की और उसे चुरानी के एक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया, लेकिन उसकी हालत खराब हो रही थी, इसलिए स्वास्थ्य केंद्र ने उसे अचलपुर और फिर अमरावती रेफर कर दिया.

वडेट्टीवार ने कहा, “रविवार की सुबह मां और शिशु दोनों के लिए जीवन का संघर्ष समाप्त हो गया. अपर्याप्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के कारण दोनों की जान चली गई और मेलघाट में संवेदनहीन अधिकारियों की पोल खुल गई. सरकार, जो ‘लड़की बहिन’ योजना के तहत उन्हें 1500 रुपये प्रति माह का भुगतान करके वोट मांग रही है, यहां एम्बुलेंस के लिए मेगा प्रचार का पैसा खर्च कर सकती थी.”

एसएचके/जीकेटी