नई दिल्ली, 22 मार्च . भारतीय हिमालयी नालंदा बौद्ध परंपरा परिषद (आईएचसीएनबीटी) की पहली आम सभा का शनिवार को नई दिल्ली में समापन हो गया. इसमें बौद्ध धर्म से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई.
इस दो दिवसीय कार्यक्रम में देश भर के विभिन्न हिमालयी राज्यों से 120 बौद्ध प्रतिनिधि शामिल हुए, जिन्होंने बौद्ध धर्म के मुख्य दर्शन और प्रथाओं पर चर्चा की. विशेष रूप से नालंदा बौद्ध परंपरा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के तरीकों पर विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श हुआ.
कार्यक्रम में, प्रतिनिधियों ने तेजी से बदलती दुनिया में बौद्ध धर्म की पवित्र शिक्षाओं को संरक्षित करने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों पर भी गहन चर्चा की. विशेष रूप से आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर विचार किया गया, जिनका असर बौद्ध धर्म और उसकी परंपराओं पर पड़ रहा है.
आईएचसीएनबीटी की स्थापना और गठन, ट्रांस इंडियन हिमालयी क्षेत्र में स्थित सभी नालंदा बौद्ध आध्यात्मिक गुरुओं के संरक्षण में हुआ है. यह क्षेत्र पश्चिमी हिमालय के लद्दाख, लाहौल-स्पीति-किन्नौर, काजा (हिमाचल प्रदेश), उत्तरकाशी, उत्तराखंड के डोंडा से लेकर सिक्किम के पूर्वी हिमालय, दार्जिलिंग-कलिम्पोंग (पश्चिम बंगाल) से लेकर अरुणाचल प्रदेश के मोन्यूल-तवांग तक फैला हुआ है.
आईएचसीएनबीटी ने अपने-आप को एक भारतीय राष्ट्रीय संघ निकाय के रूप में स्थापित किया है, जो हिमालयी बौद्ध समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर संरक्षित और सम्मानित करने के लिए काम कर रहा है.
आयोजकों का मानना है कि परिषद, अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देने, स्थानीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संगठनों के साथ सहयोग करने के साथ-साथ, हिमालयी बौद्ध समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाएगी. यह पहल न केवल क्षेत्र की आध्यात्मिक समृद्धि की रक्षा करती है, बल्कि वैश्विक बौद्ध प्रवचन में भी योगदान देती है, जिससे दुनिया भर में बौद्ध दर्शन और अभ्यास की गहरी समझ को बढ़ावा मिलता है. आईएचसीएनबीटी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हिमालयी बौद्ध धर्म का सार पनपता रहे और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहे.
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एकेएस/एकेजे