नई दिल्ली, 26 मई . पैरालिंपियन सिमरन शर्मा ने विश्व मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने तक की अपनी चुनौतीपूर्ण यात्रा के बारे में बताया. सिमरन का जन्म समय से पहले हुआ था. किसी ने उनसे जीवन में इतना आगे निकलने की अपेक्षा नहीं की थी. सिमरन ने अपनी लड़ाई के बारे में बताया जिसमें धैर्य और दृढ़ संकल्प की झलक मिलती है.
ट्रैक पर उनका सफर आम नहीं था, हर कदम पर चुनौतियों से भरा था, जो उनके जन्म से ही शुरू हो गई थी.
सिमरन ने गगन नारंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन की पहल हाउस ऑफ ग्लोरी पॉडकास्ट में याद किया, “डॉक्टरों ने कहा कि मैं बच नहीं पाऊंगी, और तब कोई भी बहुत परेशान नहीं था. यह समय से पहले की बात थी, और मैं एक लड़की थी. लेकिन मेरे पिता ने मुझे जीवित रखने का फैसला किया. मैं मशीनों के बिना जीवित रही, लेकिन कई समस्याओं के साथ. मेरी आंखें कमजोर थी, कमजोर मांसपेशियों और शरीर के साथ मैं बड़ी हुई. मैंने कभी ओलंपिक के बारे में सपना भी नहीं देखा था. बस अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक छोटी सी नौकरी की उम्मीद थी.”
लेकिन शादी के बाद सब कुछ बदल गया. उनके पति और कोच गजेंद्र सिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. 2024 पेरिस पैरालिंपिक कांस्य पदक विजेता ने बताया, “उन्होंने मुझे कभी घर का काम नहीं करने दिया. उन्होंने कहा कि बस अच्छा खाना खाओ और ट्रेनिंग करो. उन्होंने सुनिश्चित किया कि मैं घूंघट न पहनूं, हमारे गांव की बाकी महिलाओं पर जिस तरह के प्रतिबंध थोपे जाते रहे हैं, वह मैं खुद पर लागू न करूं. उनका एक ही लक्ष्य था – ओलंपिक.”
सेना के जवान गजेंद्र ने याद किया, “ऐसे दिन भी थे जब मैंने उसे इतनी कड़ी ट्रेनिंग दी कि वह जमीन पर उल्टी कर देती थी. मेरी मां ने उसे एक बार देखा और मुझसे पूछा, ‘क्या तुम उसे मारने की कोशिश कर रहे हो?’ लेकिन मुझे पता था कि उसे उस स्तर तक पहुंचने के लिए क्या चाहिए. मैं रसोई में घंटों बिताता था, उसके आहार पर काम करता था और मैदान पर उसे व्यवस्थित तरीके से ट्रेनिंग देता था.”
शारीरिक कठिनाइयों के साथ-साथ मानसिक संघर्ष भी कम नहीं थे. 2019 की वर्ल्ड चैंपियनशिप के समय सिमरन के पिता वेंटिलेटर पर थे और उनके पति कर्ज में डूबे हुए थे, क्योंकि उन्होंने सारा पैसा सिमरन की ट्रेनिंग में लगा दिया था.
सिमरन ने बताया, “पापा की एक दवा 150 रुपये की थी, और हमारे पास पैसे नहीं थे. लोग मेरे पति को दोष देते थे कि वह मेरा साथ क्यों दे रहा है. मैं टूट गई थी. लगा कि शायद अगर मैं ही नहीं रहूं, तो सारी परेशानियां भी खत्म हो जाएँगी. मैंने आत्महत्या की कोशिश की.”
लेकिन एक बार फिर उनके पति ने उन्हें संभाला. उन्होंने कहा, “हम गिरेंगे, लेकिन फिर उठेंगे. हम कभी हार नहीं मानेंगे. मैं आखिरी सांस तक तुम्हारे साथ हूँ.”
आज सिमरन मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हैं. उन्होंने अपनी माँ और सास के लिए घर बनवाए हैं और 2024 पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक भी जीता है.
सिमरन की कहानी सिर्फ़ एक खिलाड़ी की सफलता नहीं है – यह एक लड़की की हिम्मत, समाज से टकराने की ताकत, और असली ‘सपोर्ट’ की परिभाषा है.
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एएस/