नई दिल्ली, 30 अप्रैल . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जाति जनगणना को भी मंजूरी दे दी गई. इस पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया. साथ ही केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने भी इस कदम को वंचित तबकों को सशक्त करने की दिशा में उठाया गया ठोस कदम बताया.
नित्यानंद राय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “पूर्व में भी जब समाज के गरीब वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया था, तब समाज में व्यापक स्वीकार्यता देखने को मिली और किसी प्रकार का सामाजिक तनाव उत्पन्न नहीं हुआ था. प्रधानमंत्री जी का बहुत-बहुत आभार.” चिराग पासवान ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जाति आधारित जनगणना को मंजूरी देकर देशहित में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया. मेरी और मेरी पार्टी की एक लंबे अरसे से मांग रही थी कि देश में जाति आधारित जनगणना कराई जाए, आज इस मांग को स्वीकृति मिल चुकी है. इसको लेकर मैं देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री का हृदय से आभार प्रकट करता हूं. पिछले कुछ वर्षों में जातीय जनगणना को लेकर मेरे और केंद्र सरकार के बीच कई भ्रांतियां फैलाई गईं. आज का निर्णय इन सभी अफवाहों का स्पष्ट जवाब है. केंद्र सरकार का यह कदम देश के समावेशी विकास की दिशा में एक बड़ा बदलाव लाएगा. जातीय जनगणना से नीतियों को अधिक न्यायसंगत और लक्षित बनाने में मदद मिलेगी. इससे वंचित तबकों को सशक्त करने की दिशा में ठोस जानकारी और आधार मिलेगा.”
जेडीयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, “देशभर में आगामी जनगणना के साथ जातीय गणना भी कराने के ऐतिहासिक फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का संपूर्ण जदयू परिवार की ओर से कोटिशः आभार एवं अभिनंदन. हमें विश्वास है, इस फैसले से वंचित तबकों के कल्याण एवं उत्थान के लिए और अधिक कारगर योजना बनाने में मदद मिलेगी. जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘न्याय के साथ विकास’ की अपनी नीति के अनुरूप, देश में सबसे पहले बिहार में पूरी पारदर्शिता के साथ जातीय गणना करा कर उसका परिणाम भी सार्वजनिक कर दिया है. उनका स्पष्ट मानना है कि सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करने और लक्षित तबकों के कल्याण के लिए सटीक योजना बनाने के उद्देश्य से विभिन्न जातियों का सटीक आंकड़ा होना जरूरी है.” संजय झा ने आगे लिखा, “इतिहास गवाह है कि भारत में आजादी से पहले हुई जनगणना में जातिवार आंकड़े भी दर्ज किए गए थे. लेकिन, वर्ष 1951 में कांग्रेस की सरकार ने इसे बंद करवा दिया था. सामाजिक रूप से वंचित तबकों की सटीक पहचान करने और उनके लिए अधिक कारगर योजना बनाने की राह में जातिगत आंकड़ों की अनुपलब्धता एक बड़ी बाधा बन रही थी. विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक समूहों द्वारा की जा रही मांग के मद्देनजर यूपीए सरकार ने 2011 की जनगणना में जातियों का सर्वे कराने का फैसला किया, लेकिन, उन आंकड़ों में इतनी ज्यादा विसंगतियां थीं, कि उसे सार्वजनिक तक नहीं किया गया. अब एनडीए सरकार द्वारा पूरे देश में सटीक जातीय गणना कराने का ऐतिहासिक फैसला वंचित तबकों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है, जिसके सुखद परिणाम आने वाले वर्षों में दिखेंगे. इससे पहले सामान्य वर्ग के गरीबों को संविधान संशोधन के जरिये 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला भी एनडीए सरकार ने ही किया था, जिसकी कांग्रेस सरकारों द्वारा लगातार उपेक्षा की गई थी.”
बता दें कि कैबिनेट बैठक में जाति जनगणना को भी मंजूरी दे दी गई है. सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने जाति जनगणना का विरोध किया है. 1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं हुई. जाति जनगणना की जगह कांग्रेस ने जाति सर्वे कराया, यूपीए सरकार में कई राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से जाति सर्वे किया है.
उन्होंने आगे कहा कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा. तत्पश्चात एक मंत्रिमंडल समूह का भी गठन किया गया था, जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति आधारित जनगणना की संस्तुति की थी. इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना के बजाए, सर्वे कराना ही उचित समझा, जिसे सीईसीसी के नाम से जाना जाता है.
उन्होंने आगे कहा कि इन सब के बावजूद कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दलों ने जाति जनगणना के विषय को केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया.
वैष्णव ने कहा कि जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है और यह केंद्र का विषय है. हालांकि, कई राज्यों ने सर्वे के माध्यम से जातियों की जनगणना की है. जहां कुछ राज्यों में यह कार्य सुचारू रूप से संपन्न हुआ है, वहीं कुछ अन्य राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से और गैर-पारदर्शी ढंग से सर्वे किया है.
वैष्णव ने आगे कहा कि इस प्रकार के सर्वे से समाज में भ्रांति फैली है. इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीति के दबाव में न आए, जातियों की गणना एक सर्वे के स्थान पर मूल जनगणना में ही सम्मिलित होनी चाहिए. इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश की भी प्रगति निर्बाध होती रहेगी. पीएम मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए.
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पीएसएम/