नेपिडॉ, 7 अगस्त . म्यांमार के कार्यवाहक राष्ट्रपति यू म्यिंट श्वे का Thursday को राजधानी नेपिडॉ में 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. यह जानकारी नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी काउंसिल (एनडीएससी) ने दी.
यू म्यिंट श्वे लंबे समय से पार्किंसन रोग और अन्य संबंधित तंत्रिका संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे. जुलाई 2024 से वे नेपिडॉ स्थित डिफेंस सर्विसेज जनरल अस्पताल में गहन चिकित्सा में भर्ती थे.
बीमारी के चलते वह पिछले वर्ष से चिकित्सकीय अवकाश पर थे और कार्यभार सीनियर जनरल मिन आंग हलाइंग को सौंप दिया गया था. एनडीएससी ने उनके सम्मान में राज्य स्तरीय अंतिम संस्कार आयोजित करने की घोषणा की है.
यू म्यिंट श्वे का जन्म 1951 में मंडाले क्षेत्र में हुआ था. उन्होंने 1971 में डिफेंस सर्विसेज अकादमी में प्रवेश लिया और म्यांमार की सेना “तातमदाव” में विभिन्न पदों पर कार्य किया. 2010 में वे लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए.
इसके बाद उन्होंने 2011 से 2016 तक यांगून क्षेत्र के Chief Minister के रूप में सेवा दी. मार्च 2016 में उन्हें म्यांमार का उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया था.
1 फरवरी 2021 को, तत्कालीन राष्ट्रपति यू विन म्यिंट को सैन्य तख्तापलट में हिरासत में लिए जाने के बाद यू म्यिंट श्वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. उसी दिन उन्होंने एक वर्षीय आपातकाल की घोषणा की और देश की सत्ता सेना प्रमुख को सौंप दी थी.
बाद में, कमांडर-इन-चीफ के कार्यालय ने राज्य प्रशासन परिषद का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता मिन आंग हलाइंग ने की. एनडीएससी ने आपातकाल की अवधि को कई बार छह-छह महीने के लिए बढ़ाया, जो हाल ही में 31 जुलाई को समाप्त हुई है.
हाल ही में, राज्य प्रशासन परिषद के प्रवक्ता जॉ मिन टुन ने घोषणा की थी कि अब देश में आम चुनाव कराने के लिए आपातकाल समाप्त किया जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमार एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है. म्यांमार आर्थिक पतन, बढ़ते संघर्ष, जटिल जलवायु संकट और गहराती गरीबी का सामना कर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने पिछले महीने कहा कि म्यांमार एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहां युद्ध, दमन और पीड़ा का बोलबाला है. तख्तापलट के बाद से अब तक करीब 6,800 नागरिक मारे जा चुके हैं और 22,000 से अधिक को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है. वहीं, 2.2 करोड़ लोग मानवीय सहायता के मोहताज हैं और 35 लाख से अधिक लोग संघर्ष के चलते विस्थापित हो चुके हैं.
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डीएससी/