नई दिल्ली, 2 फरवरी . हुर्रियत चेयरमैन और मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक ने रविवार को से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कश्मीर की हालात, कश्मीरी पंडितों के डेलिगेशन से मुलाकात और उनकी वापसी पर प्रतिक्रिया दी. इसके अलावा, उन्होंने वक्फ संशोधन बिल 2024 को लेकर चिंता व्यक्त की और इसे मुसलमानों के हितों के खिलाफ बताया. पेश है मीरवाइज उमर फारूक से बातचीत का अंश.
सवाल:- कश्मीर में वर्तमान स्थिति को लेकर आपका क्या कहना है?
जवाब:- कश्मीर में जो हालात हैं, वह हम सबके सामने हैं. सब कुछ स्पष्ट है, कुछ भी छुपा हुआ नहीं है. हम हमेशा से यह मानते हैं कि कश्मीर समस्या का हल केवल बातचीत के जरिए ही निकल सकता है. कश्मीर की समस्या एक पुरानी समस्या है और इसका समाधान संवाद से ही संभव है.
सवाल:- कश्मीरी पंडितों के डेलिगेशन से आपकी मुलाकात हुई, क्या कुछ कहेंगे?
जवाब:- कश्मीरी पंडितों का मुद्दा एक मानवीय मुद्दा है, यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. कश्मीर के मुसलमान चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित अपने घर लौटें. मैंने दिल्ली में कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और इस पर चर्चा की. मैंने कई बार जामा मस्जिद में खुलकर यह बात कही है कि हम कश्मीरी पंडितों के लौटने के लिए हर संभव सहयोग देने को तैयार हैं. हम चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित बिरादरी की ओर से भी कुछ कदम उठाए जाएं. उनकी ओर से एक इंटरफेयर कमेटी बनाने का सुझाव दिया गया है, जिस पर हम आगे विचार करेंगे और कदम उठाएंगे. हम कश्मीरी पंडितों की वापसी को लेकर पहल करेंगे. कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच पहले जो प्रेम और भाईचारे का माहौल था, उसे फिर से स्थापित करना चाहिए.
सवाल:- संसद में वक्फ संशोधन बिल को पेश करने की तैयारी है, क्या कहेंगे?
जवाब:- मैं दिल्ली इसी संबंध में आया हूं. मैंने ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) में अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं और कहा है कि इस संशोधन बिल से मुसलमानों के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और यह समाज में और समस्याएं उत्पन्न करेगा. मैं चाहता हूं कि यह बिल पारित न हो. मैंने जेपीसी में यह भी कहा कि इस पर और विचार किया जाना चाहिए और इसे अगले सत्र तक टाल दिया जाए. वक्फ एक आस्थागत मामला है, सरकार को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार को वक्फ के मामलों में अपनी भूमिका सीमित रखनी चाहिए. यह लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़ा मुद्दा है और इसे हर किसी की सहमति और विश्वास के साथ सुलझाना चाहिए. जो लोग इंसानियत और भाईचारे में विश्वास रखते हैं, उन्हें इस बिल के खिलाफ खड़ा होना चाहिए. मुझे लगता है कि इस बिल को पास करने में जल्दबाजी की जा रही है. मैं उम्मीद करता हूं कि एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इस बिल का समर्थन नहीं करेंगे और बातचीत की प्रक्रिया को अगले सत्र तक के लिए स्थगित किया जाएगा.
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पीएसके/