मुनि तरुण सागर : जलेबी खाते-खाते बन गए संन्यासी, फिर ‘अपने वचनों’ से दुनिया को दिखाई राह

नई दिल्ली, 25 जून . जैन धर्म के दिगंबर पंथ के प्रसिद्ध मुनि तरुण सागर की 26 जून को जयंती है. उन्होंने दुनिया की सुख-सुविधाओं से दूर रहकर एक मुश्किल जीवन जीया. सादगी में जिंदगी गुजारी और हमेशा इंसान को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया. तरुण सागर अपने “कड़वे वचनों” के लिए सबसे ज्यादा चर्चित थे. हालांकि उनके संन्यासी बनने का किस्सा भी काफी अनोखा है.

26 जून 1967 को उनका जन्म मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक गांव में हुआ. मुनि तरुण सागर ने 13 साल की उम्र में घर-परिवार छोड़ दिया था. वो जलेबी खाते-खाते संन्यासी बन गए. एक इंटरव्यू में खुद मुनि तरुण सागर ने इसका खुलासा किया था.

इंटरव्यू में तरुण सागर ने कहा था, “बचपन में मुझे जलेबी बहुत पसंद थी. स्कूल से घर जाते समय एक होटल के पास बैठकर जलेबी खा रहे थे. नजदीक में आचार्य विद्यासागर का प्रवचन चल रहा था. वो प्रवचन में बोल रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो. जब मेरे कानों में ये शब्द पड़े तो जलेबी का रस जाता रहा और भगवान बनने का रस पैदा हो गया.”

इस तरह छठी क्लास में पढ़ते समय उन्होंने संन्यासी के रूप में जीवन की शुरुआत की. 20 साल की उम्र में उन्होंने दिगंबर मुनि की दीक्षा ली और सभी सांसारिक वस्तुओं का त्याग कर दिया. उसी इंटरव्यू में मुनि तरुण सागर ने बताया कि संन्यासी बनने के फैसले को लेकर उन्हें कभी पछतावा नहीं हुआ.

आगे चलकर तरुण सागर जैन धर्म के दिगंबर पंथ के प्रसिद्ध मुनि बने. वो आम प्रथाओं और विचारों के आलोचक रहे. हिंसा और रूढ़िवाद के विरुद्ध प्रखर रूप से बोलना और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से तल्ख जवाबी ने उन्हें अलग पहचान दिलाई. उनके प्रवचनों को ‘कड़वे प्रवचन’ कहा जाता था.

उन्होंने इन्हीं ‘कड़वे वचनों’ से लोगों को सही राह दिखाने की उन्होंने कोशिश की और लोगों ने उनके इन वचनों को आत्मसात भी किया. उनके प्रवचन सुनने के लिए लाखों की संख्या में लोग आया करते थे. हालांकि 1 सितंबर 2018 को दिल्ली में उनका निधन हो गया.

डीसीएच/जीकेटी