मुलायम सिंह यादव: सैफई के पहलवान से सियासत के सुल्तान, धरती पुत्र रहे बेमिसाल

New Delhi, 9 अक्टूबर . सैफई का धूल भरा अखाड़ा, जहां कुश्ती की धमक के बीच एक साधारण किसान का बेटा पहलवान बनने का सपना संजोए खेलता था. वह लड़का था मुलायम सिंह यादव, जिसने कभी नहीं सोचा होगा कि वही अखाड़ा राजनीति का मैदान बनेगा, जहां वह बड़े-बड़े दिग्गजों को धूल चटाएगा.

22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई गांव में मूर्ति देवी और सुघर सिंह के घर जन्मे मुलायम सिंह यादव का सफर एक आम किसान परिवार से शुरू होकर उत्तर प्रदेश की सत्ता के शिखर तक पहुंचा. आज, जब हम उनके Political करियर को देखते हैं, तो लगता है जैसे कुश्ती का हर धौल सियासत का दांव बन गया.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘नेताजी’ के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव ने एक साधारण किसान परिवार से निकलकर देश की सियासत में एक नया मुकाम बनाया. उनकी कहानी संघर्ष, साहस और सामाजिक न्याय की लड़ाई की मिसाल है.

पांच भाई-बहनों में से एक, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की. राजनीति विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद, उन्होंने शिक्षक के रूप में करियर शुरू किया. 1963 में करहल के जैन इंटर कॉलेज में अध्यापक बने मुलायम जल्द ही छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. राम मनोहर लोहिया और राज नारायण जैसे समाजवादी नेताओं से प्रभावित होकर उन्होंने Political सफर शुरू किया. 1967 में पहली बार जसवंतनगर से विधायक चुने गए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी Political यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही. वो 1975 की इमरजेंसी में 19 महीने जेल में रहे, लेकिन इससे उनका हौसला नहीं टूटा.

साल 1969, 1974 और 1977 में वे लगातार विधायक चुने गए. 1977 में जनता पार्टी की लहर में राम नरेश यादव Government में मात्र 38 साल की उम्र में सहकारिता मंत्री बने. यहां से उनकी छवि एक कुशल प्रशासक की बनी, जो किसानों और पिछड़ों के हितों की रक्षा करता है.1980 के दशक में मुलायम का कद तेजी से बढ़ा. लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वे 1985 और 1989 में फिर विधायक बने, लेकिन असली धमाका 1989 में हुआ, जब जनता दल की लहर में वे उत्तर प्रदेश के Chief Minister बने. यह पहला मौका था जब एक समाजवादी नेता ने यूपी की कमान संभाली. उनके पहले कार्यकाल में किसान कल्याण और पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर जोर दिया गया, लेकिन 1991 में जनता दल के टूटने से Government गिर गई.

तीन बार Chief Minister रहते हुए उन्होंने पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं. 1992 में Samajwadi Party की स्थापना की, जो आज भी उत्तर प्रदेश की प्रमुख Political ताकत है.

1993 में कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से वे फिर Chief Minister बने. इस कार्यकाल में Lucknow में दंगे दबाने के साथ-साथ विकास योजनाओं पर फोकस किया. केंद्र की राजनीति में मुलायम का प्रवेश 1996 में हुआ. संयुक्त मोर्चा Government में वे रक्षा मंत्री बने, लेकिन Government की अस्थिरता ने उन्हें वापस यूपी लौटाया. 2003 में तीसरी बार Chief Minister बनकर उन्होंने साबित किया कि वे अटल हैं.

केंद्र में रक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में तमाम बड़े फैसले लिए गए. मुलायम सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि सामाजिक न्याय की लड़ाई रही. मंडल आयोग की सिफारिशों का समर्थन करते हुए उन्होंने पिछड़ों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया. साल 1993 में बसपा के साथ गठबंधन कर भाजपा को सत्ता से दूर रखा. उनके प्रयासों से उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य और शिक्षा का ढांचा मजबूत हुआ. हालांकि, उनके जीवन में विवाद भी कम नहीं थे. 1990 के अयोध्या कांड में कारसेवकों पर गोली चलवाने का फैसला उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ का उपनाम दिलाया, जिससे हिंदू वोटरों में नाराजगी फैली.

Lok Sabha में 7 बार (1989 से 2019 तक) और विधानसभा में 10 बार जीतने का रिकॉर्ड आज भी अटूट है. मुलायम सिंह यादव की राजनीति में विवाद भी कम न थे. परिवारवाद के आरोप लगे तो मंडल आयोग लागू करने पर उच्च वर्ग का विरोध झेला, लेकिन उनकी ताकत सीधी बोलचाल, किसानों से जुड़ाव और गठबंधन रही. वे Prime Minister बनते-बनते रह गए, लेकिन यूपी की सियासत को उन्होंने हमेशा प्रभावित किया.

10 अक्टूबर 2022 को 82 वर्षीय मुलायम सिंह यादव इस दुनिया से चल बसे, लेकिन उनकी विरासत आज भी जिंदा है.

एकेएस/डीकेपी