नई दिल्ली, 18 नवंबर . भारत की इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री काफी तेजी से बढ़ रही है और यह 25 से 30 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ आने वाले वर्षों में 1.2 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा करेंगी. यह जानकारी सोमवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में दी गई.
टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया कि इन 1.2 करोड़ नौकरियों में से 30 लाख प्रत्यक्ष और 90 लाख अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत के विकास को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए 1 करोड़ प्रशिक्षित पेशेवरों की भारी कमी के इस अंतर को पाटने की तत्काल आवश्यकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन 2030 तक देश को 500 अरब डॉलर का इलेक्ट्रिक मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाने के लक्ष्य के कारण भारत की इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है.
रिपोर्ट में आगे बताया गया कि जैसे-जैसे इंडस्ट्री संचार और प्रसारण इलेक्ट्रॉनिक्स, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स और एयरोस्पेस और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में विविधता ला रही है, विशेष कौशल की मांग बढ़ गई है.
भारत इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग में वैश्विक लीडर बनने की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. वित्त वर्ष 23 में घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन 101 अरब डॉलर रहा था. इसमें मोबाइल फोन का 43 प्रतिशत, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स का 12 प्रतिशत, इंडस्ट्रीयल इलेक्ट्रॉनिक्स का 12 प्रतिशत और ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स का 8 प्रतिशत योगदान है.
टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप के सीईओ ए.आर. रमेश ने कहा, “वित्त वर्ष 2027-28 तक इंडस्ट्री को 1.2 करोड़ पेशेवरों की आवश्यकता होगी. इसमें 30 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां और 90 लाख अप्रत्यक्ष नौकरियां होंगी. फिर भी 1 करोड़ का चौंका देने वाला कौशल अंतर बना हुआ है. इस अंतर को पाटने के लिए कौशल विकास पर मजबूत ध्यान देने की आवश्यकता है.
मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए शुरू की गई पीएलआई योजना जैसी नीतियों ने इलेक्ट्रॉनिक्स सहित 14 प्रमुख क्षेत्रों में 1.97 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए गए एम्प्लॉयमेंट लिंक्ड इंसेंटिव (ईएलआई) ने एक मजबूत आधार तैयार किया है.
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