15 साल पहले ‘वांचे गुजरात’ की शुरुआत, ‘मोदी स्टोरी’ ने किया याद

नई दिल्ली, 1 अप्रैल . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कई जनांदोलनों की परिकल्पना और उन्हें साकार रूप देने के लिए जाना जाता है. देश के सबसे बड़े राजनीतिक पद पर पहुंचने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भी उन्होंने राज्य में ऐसी ही परिवर्तनकारी पहलों को मूर्त रूप दिया. इन्हीं में से एक है, 15 साल पहले शुरू किया गया ‘वांचे गुजरात’ कार्यक्रम.

गुजरात के युवाओं में पढ़ने और ज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम शुरू किया गया था. इसके तहत ग्रंथ मंदिर, श्रेष्ठ वाचक और तरतु पुस्तक जैसी कई अवधारणाएं शुरू की गई थीं.

‘मोदी स्टोरी’ ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो शेयर कर 1 अप्रैल 2010 को शुरू किए गए इस कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी. इसमें आरएसएस कार्यकर्ता हर्षद शाह ने बताया कि कैसे ‘वांचे गुजरात’ ने राज्य के युवाओं में पुस्तक प्रेम जागृत किया.

उन्होंने बताया कि हर स्कूल में ‘ग्रंथ सारथी’ बनाए गए, श्रेष्ठ वाचक प्रतिस्पर्धा का आयोजन हुआ, ‘ग्रंथ मंदिर’ बने और पुस्तक परिचय का कार्यक्रम हुआ. स्कूल, तहसील, जिला और राज्य स्तर तक श्रेष्ठ वाचक प्रतिस्पर्धा बहुत अच्छी तरह चली.

उन दिनों को याद करते हुए हर्षद शाह ने बताया कि तरतु पुस्तक (तैरती पुस्तक) भी काफी सफल रहा. एक किताब एक व्यक्ति पढ़कर दूसरे को देता था, दूसरा तीसरे को, और इस प्रकार 12वां व्यक्ति उसे किसी लाइब्रेरी में जमा करा देता था. इस प्रकार लाइब्रेरी भी समृद्ध बनी.

उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत सर्वोच्च आयोजन ‘जीवन गढ़तर शिविर’ रहा. राजधानी गांधीनगर के महात्मा मंदिर में पूरे राज्य के हर जिले से चयनित 1,200 श्रेष्ठ विद्यार्थियों को समाज के प्रबुद्ध लोगों से आमने-सामने बात करने का मौका मिला. बहुत अच्छी लाइव प्रश्नोत्तरी होती थी. उनमें से कुछ छात्रों ने तो दो हजार तक पुस्तकें पढ़ी थी.

हर्षद शाह ने कहा, “नरेंद्र भाई के मन में यह विचार था कि गुजरात के लोग वैचारिक समृद्धि प्राप्त करें, ज्ञान बढ़ाएं. उन्होंने कहा कि पुष्प नहीं पुस्तक.”

यह बात पूरे गुजरात में फैली. अधिकारियों ने उसे आगे बढ़ाया और पुस्तक ही पुस्तक सभी कार्यक्रमों में भेंट किए जाने लगे.

“एक और बढ़िया कार्यक्रम हुआ – एक साथ पढ़े गुजरात, एक साथ वांचे गुजरात. सबको एक साथ पढ़ना था, एक घंटे के लिए. यह कार्यक्रम काफी प्रभावी रहा. बच्चे किसी स्कूल की लॉबी में, किसी मैदान में बैठे थे. शिक्षक भी पढ़े, विद्यार्थी भी पढ़ते रहे और अच्छा माहौल बना.”

उन्होंने बताया कि वाइब्रेंट गुजरात में आए भूटान के राजा ने भी इस कार्यक्रम को अपने देश में लागू करने का प्रयास किया था.

एकेजे/एबीएम