मोदी सरकार ने बदल दी पूर्वोत्तर के सूबों की तस्वीर, विकास की रौशनी से हैं सराबोर

नई दिल्ली, 4 अप्रैल . इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के लगातार दस सालों से चल रहे प्रयासों का नतीजा ही कहा जा सकता है कि दशकों से अलगाववादी हिंसा और अराजकता का दंश झेलते रहे पूर्वोत्तर में आज विकास की बयार बह रही है.

पूर्वोत्तर के सभी सूबों में जनता अब रचनात्मक राह पर चलकर देश के और हिस्सों के साथ विकास के सफर पर चल रही है. कहा जाए तो सारा पूर्वोत्तर पीएम मोदी के विकसित भारत के बड़े सपने को साकार रूप देने में अपनी अहम भूमिका निभाने के लिए आतुर है.

यह सब कुछ संभव हो सका है पीएम मोदी की प्रभावी नीतियों और दूरगामी सोच की वजह से. पूर्वोत्तर के विकास को लेकर पीएम मोदी की कोशिशों का एक अहम प्रमाण यह है कि अरुणाचल प्रदेश के सबसे दूरस्थ गांव को प्रधानमंत्री ने भारत का पहला गांव बताया और उसे विकास की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा गया. जबकि, पहले की सरकारों ने इसे देश के अंतिम गांव के तौर पर देखा था.

पहले की सरकार और मोदी सरकार के बीच विजन का एक यह बड़ा फर्क है, जो पूर्वोत्तर में विकास के तौर पर नजर आ रहा है. पूर्वोत्तर को अहमियत देने को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार की सोच को खुद पीएम मोदी ने ही जाहिर कर दिया है. उन्होंने हाल ही में एक साक्षात्कार में बताया कि पहले के सारे प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर जितनी बार पूर्वोत्तर के सूबों का दौरा किया, उससे अधिक बार वे खुद इन राज्यों में जा चुके हैं. यही तथ्य तो मोदी सरकार की पिछली सरकारों से भिन्न उन कोशिशों को रेखांकित करते हैं, जो पूर्वोत्तर में विकास के लिए अहम रही हैं.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अपने अद्भुत, अकल्पनीय और अविस्मरणीय संस्कृति और विरासत के लिए समस्त विश्व में सर्व विख्यात पूर्वोत्तर के सूबे दुर्भाग्यवश पिछले कई दशकों तक उपेक्षा, हिंसा, अराजकता और अलगाव का शिकार रहे. लेकिन, अब विकास का तेज सूर्योदय भारत के पूर्वोत्तर हिस्से को चौतरफा रौशन कर रहा है. यहां के बाशिंदे पिछले कई सालों से अभूतपूर्व विकास की अनुभूति प्राप्त कर रहे हैं. देश से अलग-थलग पड़ने की वजह से जनमानस में पैदा हुई हीन भावना को उत्साह और उमंग ने हरा दिया है. पीएम मोदी के प्रेरक संबोधनों और पर्यटन के विकास को लेकर उनकी विस्तारित नीति ने पूर्वोत्तर की चमक को बढ़ा दिया है.

पहले जो पूर्वोत्तर भारत महज हिंसा, दंगा, उन्माद और उत्पात के लिए जाना जाता था, आज उसी पूर्वोत्तर भारत में विकास की गंगा बह रही है. पिछले दस सालों में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के मकसद से विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ एक या दो नहीं, बल्कि 11 शांति समझौते किए.

बता दें कि 2020 में केंद्र सरकार ने बोडो शांति समझौता किया था. इसी साल, केंद्र सरकार ने एक और समझौता किया था, जिसका नाम ब्रू-रियांग समझौता था. 2019 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा समझौता किया था. 2021 में कार्बी एंगलोंग समझौता किया गया था. 2022 में असम-मेघालय सीमा विवाद समझौता किया गया. 2002 में आदिवासी शांति समझौता किया गया.

2023 में असम अरुणाचल बॉर्डर एग्रीमेंट पर समझौता किया गया था. 2023 में दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी समझौता किया गया था. इसके बाद 2023 में एग्रीमेंट विथ यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट समझौता पर हस्ताक्षर किया गया था. 2023 में एग्रीमेंट विद यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम नामक समझौता किया गया. 2023 में त्रिपुरा मोथा एग्रीमेंट किया गया था.

पिछले कई दशकों तक पूर्वोत्तर भारत हिंसा का शिकार रही, लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के साथ ही पूर्वोत्तर भारत को हिंसा से मुक्त कराने के मकसद से समझौते किए गए.

नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा से पूर्व में जुड़े एक शख्स ने पत्रकार से बातचीत में बताया कि, ”मैंने यह संगठन 2001 में ज्वाइन किया था. मैं 15 सालों तक इस संगठन से जुड़ा रहा. उस वक्त मेरी उम्र 30 साल से ज्यादा हो चुकी थी. तब, मुझे लगा कि मेरा भी भविष्य है. लिहाजा अब मुझे एक सामान्य जीवन जीने के लिए मुख्यधारा में लौटना होगा. इसके बाद मैंने शादी करने का फैसला किया और सोचा कि अब मैं समाज के कल्याण के लिए अपना शेष जीवन व्यतीत करूंगा.”

वहीं, जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको उम्मीद है कि आगामी दिनों में पूर्वोत्तर भारत में परिवर्तन की बयार बहेगी, तो इस पर उन्होंने कहा कि मुझे मोदी सरकार पर पूरा भरोसा है. मोदी सरकार हमारा अतीत जानती है. आज तक किसी भी सरकार ने पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने के मकसद से कोई समझौता नहीं किया था, लेकिन इस सरकार ने किया है. हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान कुछ समझौते हुए थे, लेकिन कांग्रेस सरकार ने आज तक इस दिशा में कोई कोशिश नहीं की.

नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के एक और पूर्व सदस्य ने मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान पूर्वोत्तर भारत में आए विकास का उल्लेख करते हुए कहा, ”मैं 17 सालों तक इस संगठन से जुड़ा रहा. हम अपना काम करते थे. आमतौर पर हम अपने कमांडरों के निर्देशों का पालन करते थे. हम आमतौर पर फंड एकत्रित किया करते थे. सीआरपीएफ से लड़ाई करते थे, लेकिन अब हम मौजूदा सरकार का धन्यवाद करना चाहते हैं कि उन्होंने हमारे सपनों को पूरा करने के लिए कई सराहनीय प्रयास किए. लिहाजा, मैं अपने सभी लोगों से कहना चाहता हूं कि जो लोग पलायन कर चुके हैं, वो वापस लौट आएं, क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार के समय अब परिस्थिति पहले की तुलना में काफी सुधर चुकी है. मौजूदा सरकार बेहतरीन काम कर रही है.”

इसी ग्रुप के एक अन्य सदस्य ने कहा, ”मैं अब वापस अपने लोगों के बीच में लौट चुका हूं. वर्तमान में मैं अपनी आजीविका चलाने के लिए टम-टम चलाता हूं. अब यहां शांति स्थापित हो चुकी है.”

नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के एक पूर्व सदस्य ने अपने शेड्यूल के बारे में बताते हुए कहा, “2002 में, मैं इस संगठन में शामिल हुआ था. इस बीच, मैं कुछ दिनों तक बांग्लादेश में था. हमारे ग्रुप का वहां पर एक हेडक्वार्टर था. उस दौरान हम पूरे त्रिपुरा में लोगों को राहत सामग्री मुहैया कराते थे.”

इस सदस्य ने मौजूदा सरकार द्वारा पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने के मकसद से उठाए गए कदमों का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार त्रिपुरा सहित शेष पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के मकसद से सराहनीय कदम उठा रही है. उधर, आज से 10-12 साल पहले लोग कई इलाकों में जाने से भी डरते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है.

इस बीच त्रिपुरा के लोगों ने केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं से मिलने वाले लाभों का भी जिक्र किया. लाभार्थियों ने कहा कि केंद्र सरकार की जल जीवन योजना, उज्जवला सहित अन्य योजनाओं का लाभ हमारे लोगों को मिल रहा है. त्रिपुरा में ब्रू रियांग समुदाय के लिए केंद्र सरकार की जल जीवन योजना के तहत जल उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त किया गया. स्थानांतरण की वजह से लोगों को पेयजल की समस्या से जूझना पड़ रहा था, जिसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इस स्कीम की शुरुआत की.

वहीं, बोडो समुदाय की समस्या का निराकरण करने की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए बोडो टेरिटोरियल के सीईएम प्रमोद बोडो ने कहा कि बोडो समस्या को लेकर अब तक तीन समझौते हो चुके हैं. 1993, 2003 और 2020 में समझौते हुए. बोडो समुदाय की समस्या के हल के लिए यह समझौते किए गए. इससे पहले, जब कांग्रेस की सरकार थी, तो बोडो समुदाय की समस्या को अनसुना किया जाता था, लेकिन जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तो इस समस्या पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया.

जीकेटी/