विकसित भारत के लिए अतीत के अमूल्य ज्ञान को समझना होगा : रक्षा राज्य मंत्री

नई दिल्ली, 21 मई . ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ के हिस्से के रूप में मंगलवार को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘भारतीय सामरिक संस्कृति के ऐतिहासिक पैटर्न’ पर एक संगोष्ठी-सह-प्रदर्शनी आयोजित की गई थी. इसमें रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की.

इस दौरान उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को तभी साकार किया जा सकता है, जब राष्ट्र समग्र रूप से प्राचीन अतीत के अमूल्य ज्ञान को समझेगा. आत्मनिर्भर भारत की भावना केवल भारतीय वस्तुओं के उत्पादन और उपभोग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि, वर्तमान कार्यों और निर्णयों में भारतीय विचार और मूल्यों के सार को आत्मसात करने के लिए ईमानदार प्रयास भी हैं.

‘उद्भव संकलन (2023-2024)’ को विशेष रूप से सैन्य मामलों और सामान्य रूप से शासन कला के लिए भारत के प्राचीन ज्ञान पर, भविष्य की शिक्षा के लिए एक रिकॉर्ड बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें छह अध्याय और कई परिशिष्ट शामिल हैं. इस कार्यक्रम में ‘प्राचीन काल से स्वतंत्रता तक भारतीय सैन्य प्रणालियों के विकास, युद्ध और सामरिक विचारों का विकास’ विषय पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया, इसके अलावा ‘उद्भव कम्पेंडियम’ और एक पुस्तक ‘आल्हा उदल – बैलाड रेंडिशन ऑफ वेस्टर्न उत्तर प्रदेश’ का विमोचन भी किया गया.

उन्होंने आगे कहा, “भूराजनीतिक परिदृश्य लगातार विकसित हो रहा है, और हमारे सशस्त्र बलों के लिए अपने दृष्टिकोण में नवीन होना अनिवार्य है. हमारे प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में गहराई से जाकर, उद्भव जैसी परियोजनाएं न केवल रणनीतिक संस्कृति की हमारी समझ को समृद्ध करती हैं, बल्कि अपरंपरागत युद्ध रणनीतियों, राजनयिक प्रथाओं और युद्ध में नैतिक विचारों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती हैं.”

अजय भट्ट ने देश की रक्षा की ताकत को पहचानने के महत्व को रेखांकित किया. शक्ति के स्रोत के रूप में उन्होंने ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ जैसी पहल को भविष्य के लिए मार्गदर्शक बताया, जहां भारत आत्मनिर्भर है और अपनी सांस्कृतिक विरासत में गहराई से निहित है. उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ ने बौद्धिक स्तर पर नागरिक-सैन्य सहयोग को गहरा करके, शिक्षाविदों, विद्वानों, अभ्यासकर्ताओं और सैन्य विशेषज्ञों को एक आम मेज पर लाकर ‘संपूर्ण राष्ट्र’ दृष्टिकोण को मजबूत किया है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परियोजना के निष्कर्ष न केवल भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाएंगे, बल्कि भारत के प्राचीन ज्ञान की कालातीत प्रासंगिकता के प्रमाण के रूप में भी काम करेंगे.

इस अवसर पर बोलते हुए थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा कि प्रोजेक्ट उद्भव ने प्रख्यात भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के बीच पर्याप्त बौद्धिक अभिसरण का खुलासा किया है. यह उनके विचारों, दर्शन और दृष्टिकोण के बीच प्रतिध्वनि को उजागर करता है. इस प्रयास ने भारत की जनजातीय परंपराओं, मराठा नौसेना विरासत और सैन्य हस्तियों, विशेषकर महिलाओं के व्यक्तिगत वीरतापूर्ण कारनामों को उजागर करके नए क्षेत्रों में अन्वेषण को प्रेरित किया है.

जनरल मनोज पांडे ने आगे कहा कि परियोजना ने वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों की गहराई से पड़ताल की है, जो परस्पर जुड़ाव, धार्मिकता और नैतिक मूल्यों में निहित हैं. इसके अलावा, इसने महाभारत की महाकाव्य लड़ाइयों और मौर्य, गुप्त और मराठों के शासनकाल के दौरान प्रचलित रणनीतिक प्रतिभा का पता लगाया है, जिसने भारत की समृद्ध सैन्य विरासत को आकार दिया है.”

जीसीबी/एकेएस