मिल्कमैन ऑफ इंडिया ने दूध की कमी वाले भारत को उत्पादन में बनाया अग्रणी

New Delhi, 8 सितंबर . ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन ने भारत को दूध की कमी वाले देश से विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश में बदल दिया. उनके नेतृत्व में शुरू हुए ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया और लाखों किसानों को आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया.

भारत की श्वेत क्रांति के जनक और अमूल के संस्थापक डॉ. वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल के कोझिकोड में एक समृद्ध सिरियन ईसाई परिवार में हुआ था. उनके पिता सरकारी सर्जन थे. उन्होंने 1940 में चेन्नई के लोयोला कॉलेज से भौतिकी में स्नातक और 1943 में गिंडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की. 1948 में मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया, जहां उन्होंने डेयरी इंजीनियरिंग को सहायक विषय के रूप में पढ़ा.

1949 में भारत लौटने पर सरकार ने उन्हें गुजरात के आनंद में डेयरी डिवीजन में भेजा. यहीं उनकी मुलाकात त्रिभुवनदास पटेल से हुई, जो किसानों को एकजुट कर दूध सहकारी समितियों की स्थापना के लिए संघर्षरत थे.

कुरियन ने त्रिभुवनदास के साथ मिलकर 1946 में कैरा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (केडीसीएमपीयूएल) की स्थापना की, जो बाद में ‘अमूल’ के नाम से विश्व विख्यात हुआ. उनके मित्र एच.एम. दयाला ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने की तकनीक विकसित की, जिसने भारतीय डेयरी उद्योग को क्रांतिकारी बदलाव दिया. पहले केवल गाय के दूध से ये उत्पाद बनाए जाते थे. इस नवाचार ने भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

1965 में तत्कालीन Prime Minister लाल बहादुर शास्त्री ने कुरियन के आनंद मॉडल को देखते हुए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की और कुरियन को इसका पहला अध्यक्ष नियुक्त किया. 1970 में शुरू हुए ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने भारत के दूध उत्पादन को 1968-69 में 23.3 मिलियन टन से 2006-07 में 100.9 मिलियन टन तक बढ़ाया. 25 वर्षों में 1700 करोड़ रुपए के निवेश से यह कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम बना. 1998 में भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनने का गौरव हासिल किया.

कुरियन ने सहकारी मॉडल के जरिए किसानों को सशक्त किया, उन्हें प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग का नियंत्रण दिया. इससे ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिला और विशेष रूप से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई. 75 मिलियन से अधिक महिलाएं डेयरी कार्य से जुड़ीं. कुरियन ने नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद जैसे संस्थानों की स्थापना की. उनकी पुस्तक ‘आई टू हैड अ ड्रीम’ और श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंथन’, जिसे 5 लाख किसानों ने 2 रुपए दान देकर फंड किया, उनकी उपलब्धियों को दर्शाती है.

कुरियन को 1963 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1989 में वर्ल्ड फूड प्राइज और 1999 में पद्म विभूषण सहित कई सम्मान मिले. उन्होंने 9 सितंबर 2012 को 90 वर्ष की आयु में गुजरात के नडियाद में अपनी अंतिम सांस ली.

एससीएच/डीएससी