मीना काकोदकर : कोंकणी भाषा और संस्कृति की सशक्त आवाज, जिन्हें मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार

New Delhi, 28 सितंबर . जब कोंकणी साहित्य की बात आती है, तो मीना काकोदकर का नाम सबसे पहले लिया जाता है. उन्होंने न केवल कोंकणी भाषा को सम्मानजनक स्थान दिलाया, बल्कि वे पहली महिला थीं, जिन्हें कोंकणी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

मीना काकोदकर को कोंकणी साहित्य को समृद्ध करने का श्रेय जाता है. उनकी रचनाओं में भावपूर्ण लघु कथाएं, उपन्यास, निबंध और बाल साहित्य शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों, गोवा की संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उजागर करती हैं.

इसके अलावा, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने गोवा एनिमल वेलफेयर ट्रस्ट की ट्रस्टी के तौर पर भी उल्लेखनीय योगदान दिया.

29 सितंबर 1944 को गोवा के पोलोलम में पैदा हुईं मीना काकोदकर ने कोंकणी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने ‘डोगर चन्वला’, ‘सपन फुलां’ (कहानी संग्रह) और ‘सत्कान्तलों जादूगर’ (बाल नाटक) जैसी रचनाएं लिखीं.

‘मां की मौत के दो दिन गुजरे थे. उसकी याद में मुझे बार-बार रोना आ रहा था. पिताजी दिन-रात सिर पर हाथ रखे कोने में बैठे रहते. उन्हें देख कर तो मुझे मां की याद और भी सताती थी.’ कोंकणी की प्रसिद्ध लेखिका मीना काकोदकर ने इस मार्मिक प्रसंग को अपनी किताब ‘ओरे चुरुंगन मेरे’ में बड़े ही संवेदनशील ढंग से उकेरा.

उनकी लेखनी में ऐसी जादुई शक्ति थी कि शब्द जीवंत हो उठते और पाठक की आंखों के सामने पूरी घटना साकार हो जाती. उनके शब्द भावनाओं से ओतप्रोत थे, जो पाठकों के हृदय को गहरे तक छू लेते थे.

मीना काकोदकर को साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1991 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें कहानी पुरस्कार (1993 और 2003), गोवा Government यशोदामिनी पुरस्कार (2002), गोवा राज्य पुरस्कार (2007 और 2008-09), रंग सम्मान पुरस्कार (2008), और पद्म बिनानी वात्सल्य पुरस्कार (2011) से भी नवाजा गया.

उन्हें साल 2011 में 20वें अखिल भारतीय कोंकणी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया.

उनकी लेखन शैली में पात्रों की गहराई और सामाजिक संवेदनशीलता प्रमुख थी. वे मानती थीं कि लेखक पात्र के मन और परिस्थितियों में उतरकर ही उसके साथ न्याय कर सकता है.

लेखनी के अलावा वे प्रदर्शन कला और संस्कृति के प्रचार में सक्रिय रहीं. इसके साथ ही, उन्होंने ट्रस्टी के रूप में पशु कल्याण के लिए भी काम किया.

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