मरियप्पन थंगावेलु और वरुण भाटी, जिन्होंने जिंदगी की रेस को ‘कूदकर’ पार किया

नई दिल्ली, 10 सितंबर . ओलंपिक या पैरालंपिक खेलों में खिताब जीतना एक बड़ी उपलब्धि है. भारत के कुछ खिलाड़ियों ने लगातार दो ओलंपिक या पैरालंपिक में भी मेडल जीते हैं. अब तो एक ही ओलंपिक इवेंट में एक खिलाड़ी द्वारा दो मेडल लाने की उपलब्धि भी दर्ज हो चुकी है. हाल ही में पेरिस पैरालंपिक सम्पन्न हुए जिसमें भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. जिन खिलाड़ियों ने चमक बिखेरी उनमें एक नाम मरियप्पन थंगावेलु का था. जिन्होंने पैरालंपिक खेलों में एक और मेडल जीता था. ऐसा कर वह लगातार तीन पैरालंपिक मेडल जीतने वाले भारत के पहले एथलीट बन गए. एक ऐसी ऐतिहासिक उपलब्धि जिसकी शुरुआत 10 सितंबर को ही हुई थी.

मारियप्पन का जन्म तमिलनाडु के सलेम स्थित एक छोटे से गांव में हुआ. परिवार बेहद गरीब था. छह बच्चों के परिवार के साथ पिता का साथ नहीं था. मां दिहाड़ी मजदूरी और सब्जी बेचकर किसी तरह घर चलाती थीं. इतनी कठिनाई के बावजूद, पांच साल के छोटे मारियप्पन की जिंदगी में एक दुखद मोड़ आया जब एक नशे में धुत बस ड्राइवर ने टक्कर मार दी, जिससे उनका दाहिना पैर घुटने के नीचे से कुचल गया. इस हादसे ने उन्हें स्थायी रूप से दिव्यांग बना दिया और उन्हें चलने के लिए लकड़ी के पैर का सहारा लेना पड़ा.

एक तरफ जिंदगी ‘खेल’ रही थी तो दूसरी ओर मरियप्पन! दरअसल, इस बच्चे को खेल का बहुत शौक था. ये देख शिक्षक ने उन्हें ऊंची कूद करने के लिए प्रोत्साहित किया. स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया कई मेडल और ट्राफियां जीतीं तो हौसला बढ़ा. उनके खेल और लगन ने पैरा-एथलीटों के प्रसिद्ध कोच सत्यनारायण को भी प्रभावित किया. 2015 में, सत्यनारायण ने मारियप्पन को बेंगलुरु में अपने ट्रेनिंग कैम्प में शामिल किया और उनके मार्गदर्शन में, मारियप्पन ऊंची कूद में पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने.

यह रियो पैरालंपिक, 2016 की बात थी. 10 सितंबर के दिन मरियप्पन ने पुरुषों के टी42 इवेंट में 1.89 मीटर की जंप के साथ गोल्ड मेडल हासिल किया था. यह रियो पैरा खेलों में भारत का पहला गोल्ड मेडल भी था. इसके बाद उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में 1.86 मीटर की जंप के साथ सिल्वर मेडल जीता था. पेरिस पैरालंपिक के ब्रॉन्ज मेडल ने उनकी हैट्रिक पूरी कर दी. खेलों में असाधारण योगदान के लिए मारियप्पन को 2017 में पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से और 2020 में मेजर ध्यान चंद खेल रत्न से सम्मानित किया गया.

10 सितंबर को ही रियो पैरालंपिक में इसी इवेंट में एक और पैरा एथलीट का सितारा चमका था. यह थे वरुण सिंह भाटी जिन्होंने 1.86 मीटर की कूद के साथ कांस्य पदक हासिल किया था, जो उनका व्यक्तिगत तौर पर बेस्ट प्रदर्शन था. ऊंची कूद में नाम रोशन करने वाले भाटी का पहला प्यार बास्केटबॉल था, लेकिन किस्मत ने ग्रेटर नोएडा के रहने वाले इस खिलाड़ी की कहानी कुछ और ही लिखी थी.

बचपन में बास्केटबॉल में बड़े माहिर खिलाड़ी भाटी पोलियो के चलते इस खेल में अपना करियर आगे नहीं बढ़ा पाए. कई बार दिव्यांग होने के चलते बास्केटबॉल से उन्हें बाहर कर दिया जाता. जब एक स्तर के बाद यह तय हो गया कि पोलियो बास्केटबॉल को इससे आगे नहीं बढ़ने देगा तो वरुण ने जिंदगी की रेस में रुकने की जगह ‘कूदने’ का फैसला कर लिया. यह खेल था ‘हाईजंप’ यानी ऊंची कूद, जिसको खेलने की प्रेरणा उनको अपने कोच से मिली थी. 10वीं क्लास तक आते-आते वरुण इस खेल में कई घंटों तक प्रैक्टिस करते रहते थे.

परिवार का माहौल भी खेल कूद को बढ़ावा दे रहा था. भाई प्रवीण भी हाईजंप और बहन कृति पावर लिफ्टिंग में खुद को आगे बढ़ा रहे थे. यहां से वरुण का सफर नहीं रुका. वह पैरा खेलों में एक के बाद एक मेडल जीतते गए. 10 सितंबर को जब उन्होंने मेडल जीता तो परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं था. उनके बेटे ने जिंदगी की बाधाओं को ‘कूदकर’ पार कर लिया था.

वरुण ने मेडल जीतने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि 2016 का पैरालंपिक उनका सबसे पसंदीदा टूर्नामेंट था. इसलिए नहीं, क्योंकि उन्होंने वहां पदक जीता था बल्कि इसलिए, क्योंकि वह वहां होना चाहते थे. उनको वहां जो शांति मिली, उसके बाद उनको कोई घबराहट महसूस नहीं हुई. उन्होंने कहा था, “मैंने अपनी कमजोरियों पर कम और अपनी क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान दिया है.”

एएस/केआर