New Delhi, 23 सितंबर . केंद्र Government की तरफ से GST स्लैब में किए गए सुधार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने Tuesday को चापलूसी करार दिया. उन्होंने कहा कि हमने केंद्र Government को आज से 10 साल पहले ही यह कदम उठाने का सुझाव दिया था.
मणिशंकर अय्यर ने समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा कि आज से 10 साल पहले 2015 में जब इस संबंध में मसौदा पेश किया गया था, तब राज्यसभा की ओर से एक सेलेक्ट कमेटी का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता भूपेंद्र यादव को दी गई थी. इसमें कांग्रेस के तीन सदस्य भी शामिल थे, जिसमें मधुसूदन मिस्त्री, मुंगेकर साहब और तीसरा मैं खुद था.
उस समय हमने यह समझाने की कोशिश की थी कि जो मसौदा पेश किया गया, उसमें बहुत खामियां हैं. सबसे बड़ी खामी यह थी कि इसमें बहुत सारे स्लैब थे. इसके अलावा इसमें टैक्स निर्धारित करने का कोई निश्चित पैमाना भी नहीं था.
मणिशंकर अय्यर ने कहा कि उस वक्त इन तमाम विसंगतियों को गिनाने के बावजूद भी केंद्र Government ने हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया था और आज भाजपा Government कह रही है कि हमने GST स्लैब में सुधार कर दिया है. अगर हमारी बात इन लोगों ने 10 साल पहले सुन ली होती, तो कब का यह फैसला ले लिया जाता. अब Government दावा कर रही है कि हमने GST स्लैब की एक सीमा निर्धारित कर दी है.
कांग्रेस नेता ने कहा कि अब इन 10 वर्षों में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि छोटे कारोबारियों की हालत पूरी तरह से पस्त हो चुकी है. अब ये लोग कह रहे हैं कि हमने GST स्लैब में 18 फीसदी का टैक्स निर्धारित कर दिया है. यह हमारी तरफ से देश की जनता को दिया गया तोहफा है. मणिशंकर अय्यर ने कहा कि अगर आपको देश की जनता को तोहफा देना है, तो यह तोहफा 10 साल पहले ही दे देते.
उन्होंने कहा कि तंबाकू, बिजली और शराब में आप टैक्स लगा दीजिए, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी अन्य राज्य में कुछ और लिया जा रहा है, तो किसी दूसरे राज्य में कुछ और लिया जा रहा है. इसके बाद हमने केंद्र Government से पंचायतों और नगर पालिका के लिए टैक्स का कुछ हिस्सा आरक्षित करने की मांग की थी, लेकिन भाजपा Government ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया.
कांग्रेस नेता ने कहा कि अभी एनके सिंह की 15वीं फाइनेंस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कर का एक हिस्सा नगर पालिका और पंचायतों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए. इसके बाद हमने कहा था कि अगर कर के संबंध में किसी भी प्रकार का मतभेद आए, तो उसे GST काउंसिल में भेजा जाए, लेकिन अफसोस की बात है कि काउंसिल में बैठे लोगों के बीच में मतभेद है, तो ऐसी स्थिति में फिर क्या किया जा सकता है. एक कहावत है कि आप अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं बन सकते हैं. मौजूदा समय में GST काउंसिल में कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है.
उन्होंने कहा कि हमने 2011 में कहा था कि ‘GST डिस्प्यूट रेजुलेशन काउंसिल’ बनाया जाए. इसकी हमने दोबारा सिफारिश की, लेकिन इस पर किसी भी प्रकार का विचार नहीं किया गया. इसके बाद हमने कहा था कि केंद्र के पास ज्यादा शक्ति नहीं हो, इसके लिए 75 फीसदी वोट की शक्ति राज्य Government को हस्तांतरित कर दिया जाए.
इसके बाद 25 फीसदी वोट आप अपने पास रखिए, लेकिन हमारे द्वारा दिए गए 5-6 सुझावों में उन्होंने किसी पर भी विचार करना जरूरी नहीं समझा. जिसका नतीजा यह हुआ कि लोगों को बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा और अब ये लोग कह रहे हैं कि हमने कर सुधार के संबंध में बड़ा कदम उठाया है, जबकि इन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया है, इन्होंने सिर्फ हमारे द्वारा सुझाए गए सुझाव को अपनाया है.
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एसएचके/वीसी