New Delhi, 18 जुलाई . ‘मां भारती’ के अनगिनत सपूतों ने भारत को आजादी दिलाने के लिए कभी अपनी जान की परवाह नहीं की. उन्होंने अपने लहू की एक-एक बूंद से स्वतंत्रता की ऐसी कहानी रची, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमर हो गई. इन्हीं नायकों में से एक थे मंगल पांडे, जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया. उनके साहस और बलिदान ने स्वतंत्रता की ज्वाला को ऐसा जलाया, जो भारतीय इतिहास में अमर हो गया.
29 मार्च, 1857 ये वो तारीख है जब बैरकपुर छावनी में भारतीय सैनिकों को गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूसों को मुंह से खोलने का आदेश दिया गया. मंगल पांडे ने इस आदेश का न केवल पुरजोर विरोध किया, बल्कि अपने अदम्य साहस और देशभक्ति से विद्रोह की ऐसी चिंगारी सुलगाई, जो पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गई.
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मंगल पांडे 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में 22 साल की उम्र में सिपाही के रूप में भर्ती हुए. उनको 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में तैनाती मिली, जिसमें ब्राह्मणों की अधिक संख्या में भर्ती की जाती थी.
मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका. इस विद्रोह का मुख्य कारण नई एनफील्ड राइफल के कारतूस थे, जिनके बारे में अफवाह थी कि वे गाय और सुअर की चर्बी से बने थे. यह हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ था. मंगल पांडे ने 1857 के विद्रोह में पहली गोली चलाई और अपने ब्रिटिश अधिकारियों, लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट-मेजर ह्यूसन पर हमला किया. उनके इस कदम ने अन्य सिपाहियों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया.
लेखिका अनीता गौड़ की किताब ‘मंगल पांडे’ में इस विद्रोह से जुड़े कई किस्सों का जिक्र किया गया है. अनीता गौड़ बताती हैं कि किस तरह मंगल पांडे ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला खुला विद्रोह किया. उस समय, बैरकपुर छावनी में तनाव चरम पर था, क्योंकि एनफील्ड राइफल के नए कारतूसों को लेकर सिपाहियों में आक्रोश बढ़ रहा था. एक ब्राह्मण होने के नाते मंगल पांडे इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर सके.
किताब में यह भी बताया गया है कि मंगल का यह कदम सहज नहीं था और वह जानते थे कि इसका परिणाम मौत हो सकता है. फिर भी उन्होंने अपने सिद्धांतों और देश के सम्मान के लिए हार नहीं मानी और उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह का ऐलान कर दिया.
इस विद्रोह के बाद मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया. 6 अप्रैल, 1857 को उनका कोर्ट मार्शल हुआ और 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर में उन्हें फांसी दे दी गई. बताया जाता है कि स्थानीय जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए थे.
दिनकर कुमार की किताब ‘महान क्रांतिकारी मंगल पांडे’ में 29 मार्च, 1857 की घटना को विस्तार से बताया है. इसमें कहा गया है कि 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी में जब उन्हें (भारतीय सिपाहियों) गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूसों को मुंह से खोलने का आदेश दिया गया, तब मंगल पांडे ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि उनके इस विद्रोह ने साथी सिपाहियों को प्रेरित किया. हालांकि, ब्रिटिश अधिकारियों ने छल-बल से उन्हें बंदी बनाकर 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दे दी.
मंगल पांडे को 1857 के सिपाही विद्रोह का पहला शहीद माना जाता है. उनके विद्रोह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को कमजोर किया, जो 1858 में ब्रिटिश राज की स्थापना का कारण बना. भारत सरकार ने 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था. इसके अलावा, उनके जीवन को बड़े पर्दे पर भी दिखाया गया. साल 2005 में आई फिल्म ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ में उनकी कहानी को बयां किया गया है, जिसमें उनका किरदार आमिर खान ने निभाया है.
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एफएम/डीएससी