कोलकाता, 6 जनवरी . पश्चिम बंगाल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रोफेसर प्रदीप भट्टाचार्य ने हाल ही में कहा था कि साल 1997 में ममता बनर्जी का बहिष्कार करना कांग्रेस पार्टी की ऐतिहासिक भूल थी. कांग्रेसी नेताओं को आज भी इसका प्रायश्चित करना पड़ रहा है. इस पर टीएमसी नेता कुणाल घोष ने उनका समर्थन किया है.
कुणाल घोष ने कहा, “प्रोफेसर प्रदीप भट्टाचार्य ने जो कहा वह सही है. ममता बनर्जी पहले सीपीएम के खिलाफ लड़ रही थीं, जबकि कांग्रेस उस समय सीपीएम का समर्थन कर रही थी. उनका सीपीएम से दोस्ताना रिश्ता था, इस कारण बंगाल में या दिल्ली में कांग्रेस कभी भी सीपीएम के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं होने देती थी. ममता बनर्जी ने सीपीएम का सख्त विरोध किया. सीपीएम द्वारा किए गए अत्याचारों और हत्याओं का विरोध किया. उस समय ममता को कांग्रेस से बाहर किया गया था, हालांकि वह कांग्रेस में ही थीं. अब, कुछ कारणों से, जो भी प्रोफेसर भट्टाचार्य ने कहा, वह सही है. उस समय ममता ने कांग्रेस से अलग होकर अपना रास्ता चुना और कांग्रेस का समर्थक वर्ग अब तृणमूल कांग्रेस को असली कांग्रेस समझने लगा है.”
बता दें कि कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य भट्टाचार्य ने कहा कि 9 दिसंबर, 1997 को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया था, जिसमें प्रणब मुखर्जी, सीताराम केसरी और सोमेन मित्रा जैसे बड़े नेता मौजूद थे, जबकि ममता बनर्जी को इस अधिवेशन में निमंत्रण नहीं दिया गया था. उस समय ममता की लोकप्रियता अपने चरम पर थी और वह युवा नेत्री से जननेत्री बन चुकी थीं. उन्होंने बताया कि जहां एक ओर स्टेडियम में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था, वहीं ममता ने अपने समर्थकों के साथ स्टेडियम के बाहर एक सभा आयोजित की थी, जिसमें लोगों की भारी भीड़ जुटी थी. उस दिन यह स्पष्ट हो गया था कि सोमेन मित्रा और ममता बनर्जी एक साथ नहीं चल सकते थे. कांग्रेस हाईकमान को उस वक्त इनमें से किसी एक को चुनना था. कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सोमेन मित्रा को चुना.
इसके बाद नई टीएमसी और पुरानी टीएमसी के बीच टकराव पर कुणाल घोष ने कहा कि वह दोनों के बारे में नहीं जानते. वह केवल अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस को ही जानते हैं. पटना में प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी पर उन्होंने कहा कि यह एक राजनीतिक मामला है और वह इस पर कुछ नहीं कहना चाहते.
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