New Delhi, 28 अगस्त . देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सपूत मेजर मनोज तलवार भारतीय सेना के उन जांबाज सैनिकों में से एक थे, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.
हिमालय की बर्फीली चोटियों पर जहां सांसें भी ठिठक जाती हैं, एक वीर सपूत ने अपनी शहादत से इतिहास के पन्नों को स्वर्णिम अक्षरों से सजा दिया. मेजर मनोज तलवार भारतीय सेना के उस जांबाज सैनिक की कहानी है, जो देश की रक्षा के लिए हिम्मत और हौसले की मिसाल बन गया.
29 अगस्त 1969 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की गांधी कॉलोनी में जन्मे मेजर मनोज तलवार का बचपन Kanpur में बीता, जहां उनके पिता कैप्टन (सेवानिवृत्त) पीएल तलवार भारतीय सेना में तैनात थे. सेना के माहौल में पले-बढ़े मनोज का सैन्य जीवन के प्रति रुझान बचपन से ही था. वह अक्सर अपने पिता की वर्दी पहनकर दोस्तों के बीच गर्व से प्रदर्शन करते थे और पास के परेड ग्राउंड में सैनिकों के अभ्यास को देखने जाते थे. जवानों को देखकर यही कहते थे कि मैं भी बड़ा होकर सेना में जाऊंगा. इस प्रेरणा ने उन्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.
मेजर मनोज तलवार ने 1992 में तीसरी महार रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त किया. अपनी सेवा के दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में कार्य किया. उनकी वीरता और नेतृत्व का सबसे बड़ा उदाहरण 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान देखने को मिला.
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठिए और सैनिक लगातार गोलीबारी और तोपों से हमले कर रहे थे, लेकिन भारतीय सैनिक निडरता से जवाबी कार्रवाई करते हुए टुरटुक पहाड़ी की ओर बढ़ रहे थे. मेजर मनोज तलवार के कुशल नेतृत्व में भारतीय सैन्य टुकड़ी ने पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को पीछे हटने पर विवश कर दिया और टुरटुक पहाड़ी पर तिरंगा लहरा दिया. 13 जून 1999 को दुश्मनों को परास्त कर ऊंची चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. हालांकि, इस दौरान दुश्मन के तोपखाने के हमले में मेजर तलवार शहीद हो गए.
देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले मेजर मनोज तलवार को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी आखिरी बातचीत में उन्होंने अपनी मां से कहा था, “मैं दुश्मन को सबक सिखाकर ही लौटूंगा,” जो उनकी वीरता और देशभक्ति का प्रतीक बन गया.
मनोज के देश प्रेम का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब एक बार उनकी मां और बहन ने उनसे शादी की बात छेड़ी थी तो उनका जवाब था, “मां, मैं सेहरा नहीं बांध सकता, क्योंकि मेरा तो समर्पण देश के साथ जुड़ चुका है और मैं वतन की हिफाजत के लिए प्रतिबद्ध हूं. मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं कर सकता.” उन्होंने अपनी शहादत के साथ संकल्प के पीछे की कहानी बयां कर दी.
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एकेएस/डीकेपी