बिहार के औरंगाबाद जिले में आस्था के महावर्प ‘छठ’ का है विशेष महत्व

औरंगाबाद, 4 नवंबर . इस बार आस्था के महापर्व छठ की शुरूआत 5 नवंबर से हो रही है. नहाय-खाय के साथ शुरू होकर इस पर्व का समापन 8 नवंबर को सुबह का अर्घ्य देकर होगा.

इस पूजा के महत्‍व को जानने के लिए ने बिहार के औरंगाबाद जिला में स्थित भगवान भास्‍कर की नगरी में स्थापित त्रेता कालीन भगवान विश्वकर्मा के द्वारा निर्मित देव सूर्य मंदिर के मुख्य पुजारी राजेश पाठक से बात की.

छठ पूजा की महत्व ,पौराणिक मान्यता और बिहार की धरती पर छठ महापर्व करने के बारे में बात करते हुए मुख्य पुजारी ने बताया, ”छठ पूजा विशेषकर बिहार वासियों के लिए ऐसा पहला महापर्व है, जिसमें सभी लोग भगवान सूर्य की आराधना करते हैं. भगवान सूर्य को मनुष्‍य के पूरे शरीर का मालिक माना जाता है, इसलिए इस खास पर्व पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. जो भी मनुष्य अपने शरीर का कल्याण चाहते हैं, उसके लिए वह छठ महाव्रत करते हैं. इसके साथ ही छठ व्रत करने से अनेक तरह के मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है.”

आगे कहा, ”जो भी श्रद्धालु संतान चाहते हैं, यह उपवास उन्‍हें खास तरह का फल देता है. वहीं इसके अलावा इस महापर्व में सभी की मनोकामना पूरी होती है. इस दिन भगवान सूर्य की उपासना होती है इसलिए छठ महापर्व को बेहद ही विशेष माना जाता है.”

बिहार की धरती पर छठ के महत्व पर बात करते हुए मुख्य पुजारी ने बताया, ”दुनियाभर में छठ का पर्व मनाया जाता है. लेकिन इसकी शुरूआत बिहार से हुई थी. माना जाता है कि बिहार के देव सूर्य मंदिर से छठ की शुरूआत की गई थी. बिहार में यह महापर्व बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है. बिहार वालों की इस आस्‍था को देखकर बाहर के लोगों ने भी इसे करना शुरू कर दिया.”

पुजारी ने बताया, ”यह पर्व चार दिनों तक चलता है. इस महापर्व की शुरूआत नहाय-खाय के साथ 5 नवंबर से हो रही है. इसका समापन 8 नवंबर को सुबह भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाएगा. 36 घंटे का निर्जला व्रत इसे विशेष बनाता है. इस तरह का कठिन उपवास कोई और नहीं है.”

आगे कहा कि 36 घंटे के निर्जला व्रत के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उपवास तोड़ा जाता है. इसमें पहले भगवान का प्रसाद लिया जाता है. इसके बाद ही घर पर बना शुद्ध शाकाहारी भोजन लिया जाता है.

एमकेएस/एबीएम