महाकुंभ 2025 : हाथों में तिरंगा थामे अमृत स्नान करने महाकुंभ पहुंचा झारखंड से आया जत्था

महाकुंभ नगर, 14 जनवरी . महाकुंभ के मकर संक्रांति अमृत स्नान पर्व पर प्रयागराज संगम तट पर उमड़ी भीड़ में सामाजिक एकता के साथ ही राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाली आवाजें भी सुनाई देती रहीं.

एक ओर अमृत स्नान के लिए निकलने वाले अखाड़ों के साथ चल रहे श्रद्धालु जगह-जगह पर ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाते दिखे तो दूसरी ओर स्नान करने के लिए आए श्रद्धालुओं का जत्था हाथों में तिरंगा थामे राष्ट्रीय एकता का संदेश देता दिखाई दिया.

झारखंड से मकर संक्रांति स्नान पर्व पर अमृत स्नान करने महाकुंभ प्रयागराज पहुंचे मनोज कुमार श्रीवास्तव अपने जत्थे के साथ हाथों में तिरंगा थामे और ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते संगम की ओर बढ़ते दिखे. उनके जत्थे में मौजूद सभी सदस्य उनके साथ ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते दिखाई दिए. मनोज के साथ स्नान करने महाकुंभ मेले में पहुंचा 55 लोगों का जत्था काफी उत्साहित दिखाई दिया.

मनोज ने कहा कि महाकुंभ पर्व हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है. इस अवसर पर वे हाथों में राष्ट्रीय ध्वज थामकर और राष्ट्र प्रेम के नारे लगाकर राष्ट्रीय एकता का संदेश प्रसारित कर रहे हैं. मनोज ने इस मौके पर महाकुंभ मेले में स्नान के दौरान साफ-सफाई और अन्य व्यवस्थाओं की तारीफ की. उनके साथ आए श्रद्धालुओं ने भी कुंभ स्नान के लिए की गई व्यवस्थाओं की तारीफ की.

बता दें कि महाकुंभ के प्रथम अमृत स्नान का शुभारंभ मकर संक्रांति के पावन अवसर पर हुआ. संगम के त्रिवेणी तट पर लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों का अद्भुत संगम देखने को मिला. इस ऐतिहासिक अवसर पर स्नान कर श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था को नया आयाम दिया.

स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने घाट पर ही अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना की. इस पूजन में तिल, खिचड़ी और अन्य पूजन सामग्रियों का उपयोग किया गया. श्रद्धालुओं ने तिल और खिचड़ी का दान कर धर्म लाभ प्राप्त किया. दान-पुण्य के इस क्रम ने पर्व को और पवित्र बना दिया.

मकर संक्रांति के इस पावन दिन संगम के घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा. आस्था और उल्लास का ऐसा नजारा था, जिसने हर किसी के मन को भावविभोर कर दिया. स्नान के दौरान हर कोई अपने जीवन को पवित्र और सुखमय बनाने की प्रार्थना करता दिखा.

स्नान के दौरान श्रद्धालुओं ने सूर्य को अर्घ्य देकर पुण्य और मोक्ष की कामना की. मकर संक्रांति भगवान सूर्य को ही समर्पित पर्व है. मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है. स्नान के दौरान ही कई श्रद्धालुओं ने गंगा आरती की. वहीं, श्रद्धालुओं ने घाट पर ही मकर संक्रांति का पूजन-अर्चन किया और तिल-खिचड़ी का दान कर पुण्य कमाया.

एसके/एबीएम